संपादक की कलम से संपादकीय आंखों देखें अपराध*दिन प्रतिदिन नशे की दलदल में फंसता युवा किशोर!*भीतर ही भीतर राष्ट्र को खोखला करता जा रहा है खासकर नवयुवको को ईश से बचाना बेहद जरूरी है नहीं तो आज सारी दुनीया में जवान उर्जावान भारत भारत के ही सर्वनाश का कारण न बन जाए इस तरफ सरकार को और समाज को पूरे ध्यान देने की जरूरत है आज समय है समय हाथ से निकल गया फिर पछताने से कोई फायदा नहीं होगा
परंपरागत नशे के खिलाफ तो जागरूकता अभियान और कार्यक्रम चलाए ही जाते हैं, लेकिन चिंतनीय और हैरान करने वाली बात यह है कि आजकल वैकल्पिक नशे का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है और इस खतरे की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। अक्सर लोग सिगरेट, बीड़ी, तंबाकू, शराब, भांग, चरस, हेरोइन जैसे नशीले पदार्थों को ही नशीले पदार्थों में गिनते हैं। लेकिन शायद लोगों को यह पता नहीं है कि कुछ ऐसी भी चीजें हैं, जिन्हें हम नशे की श्रेणी में नहीं रखते, पर उनसे भी नशा होता है जो दूसरे नशों की तुलना में ज्यादा जानलेवा है। तस्लीम बेनकाब,यह नशा पंक्चर जोड़ने वाले रसायन, वाइटनर, थिनर, कफ सिरप, पेंट, आयोडेक्स, फेवीक्विक और इंजेक्शन के रूप लिया जाने वाला एविल, फोर्टबीन, फेनार्गन, केटामिल आदि का होता है। नशा देने वाली ये दवाइयां और रसायन सस्ते दाम में आसानी से दवा या दूसरी दुकानों पर मिल जाते हैं। नशे की चाह में युवा वर्ग कफ सिरप को शराब की तरह प्रयोग कर रहे हैं। इस वजह से इसकी मांग बढ़ती जा रही है। ज्यादातर कप सिरप कोडिन, सीटीएम, फेनाइलएफिरिन युक्त होते हैं जो ज्यादा मात्रा में लेने पर नशा पैदा करते हैं। अधिकतर युवक नशे के लिए कफ सिरप के अलावा इंजेक्शनों का भी इस्तेमाल करते हैं।
इस वैकल्पिक नशे की गिरफ्त में अधिकतर युवक चौदह से लेकर तीस वर्ष के हैं, जिनकी टोली गली-मुहल्लों में या चाय दुकानों में प्रतिदिन देखने को मिल जाती है। इसके आदी हो चुके युवकों को जब नशा सताता है तो वे दवा दुकानों की ओर रुख कर लेते हैं। यदि दुकानों में कफ सिरप नहीं मिला, तो इंजेक्शन की तलाश करते हैं। हैरान करने वाली बात है कि एविल का इंजेक्शन तीन रुपए में दवा दुकान पर आसानी से मिल जाता है। हालांकि सरकारी नियम है कि किसी भी प्रकार की दवाओं की बिक्री बिना किसी अधिकृत चिकित्सक के परचे के बगैर न की जाए। चाहे वह खांसी का सिरप हो या फिर कोई। 'तस्लीम बेनकाब,परंतु पैसे के लालच में दुकानदार धड़ल्ले से इसकी बिक्री कर रहे हैं। जानकारों की मानें तो इन दवाओं के अनुचित प्रयोग पर बंदिश लगाने के लिए युवाओं को शिक्षित किया जाना जरूरी है। साथ ही, अभिभावक भी अपने बच्चों पर ध्यान दें। मासूम बच्चों को तो यह भी नहीं पता कि वे अपनी जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। दस साल की उम्र के बच्चे वाइटनर जैसी चीजों के नशे के आदी होते जा रहे हैं। वाइटनर स्टेशनरी की दुकानों पर बेचना प्रतिबंधित नहीं है, इसलिए यह आसानी से उपलब्ध रहता है। जो कंपनियां वाइटनर बनाती हैं, उनके पास पैटेंट और अधिकार हैं। इसे बेचने के लिए कोई लाइसेंस भी नहीं चाहिए। वाइटनर पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) का एक बहुलक है। पीवीसी पानी में घुलनशील नहीं होता। इसे घोलने के लिए अल्कोहल वाले द्रव की जरूरत होती है। इसी कारण यह नशा करने के लिए प्रयोग किया जाता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद इसे बनाने वाली कंपनियों ने वाइटनर-थिनर का मिश्रण तैयार कर उच्च सुरक्षा वाले पैकिंग में बिक्री का दावा किया था, लेकिन अभी भी इसकी उपलब्धता आसान है। कुछ कंपनियों ने तो अब निब वाले पैकिंग ट्यूब बाजार में उतार दिए हैं। इसी तरह आयोडेक्स को खाकर नशा करने का चलन बढ़ रहा है। सामान्य पारंपरिक नशे से कहीं ज्यादा घातक इस नशीले पदार्थ की लत के जद में आ चुके कई किशोर और युवा सड़कों पर आसानी से मिल जाएंगे। झुग्गी बस्तियों में इस तरह के नशों का सेवन करने वाले सबसे ज्यादा हैं।
दिल्ली, मुंबई, पटना, लखनऊ सहित कई बड़े शहर इसकी जद में है। दिल्ली में करीब दो सौ से ज्यादा झुग्गियों और इलाकों की पुलिस ने पहचान की है, जहां इस तरह नशा सबसे अधिक हो रहा है। पुलिस का कहना है कि महानगरों और अन्य शहरों में झुग्गी बस्तियों में नशे का कारोबार तो पहले ही से जोरों पर था, लेकिन अब हो यह रहा है कि चरस, हेरोईन जैसे नशे महंगे होने की वजह से लोग खासतौर से बच्चे सस्ते नशे की तलाश में जहरीले रसायनों का सेवन कर रहे हैं। कबाड़ बीनने वाले बच्चों से लेकर स्कूल जाने वाले बच्चे तक इस नशे की जकड़ में है। डाक्टरों का कहना है कि इस प्रकार के नशों से अचानक मौत भी हो सकती है। अल्कोहल युक्त द्रव और रसायन तंत्रिका तंत्र को सीधा प्रभावित करते हैं। ऐसे में कम उम्र का व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है।
सूंघने से श्वसन तंत्र पर दुष्प्रभाव पड़ता है। रासायनिक प्रभाव के कारण भीतरी हिस्सों में जख्म हो सकते हैं। इस तरह के नशे से आमाशय और लीवर जैसे अंग तक प्रभावित हो सकते हैं और कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की गिरफ्त में आ सकते हैं। डेंडराइट और वाइटनर का ज्यादा सेवन सीधे दिमाग पर दुष्प्रभाव डालता है। इससे दिमाग की नसें सूखने लगती हैं और सोचने की क्षमता कम होती जाती है। इसी तरह, फोर्टबीन इंजेक्शन और कोर्डिनयुक्त कफ सिरप के लगातार सेवन से मतिभ्रम, याददाश्त का कमजोर होना, लीवर में गड़बड़ और पेट व सीने में दर्द जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। नशे के ये वैकल्पिक स्रोत मानसिक संतुलन भी बिगाड़ते हैं और मस्तिष्क की कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं।कोई बच्चा या युवक इस तरह का नशा कर रहा है या नहीं, इसका कैसे पता लगाया जाए, यह बड़ा सवाल है। कुछ बिंदुओं को ध्यान में रखने पर व्यसन करने वाले का शुरुआती अवस्था में ही पता लगाया जा सकता है। जैसे- बच्चे के जेबखर्च में बढ़ोतरी अथवा घर से कीमती सामान गायब होने लगना, कार्य में अरुचि, अधिकतर समय घर से बाहर रहना, खेलकूद में अरुचि होना, अंतर्मुखी हो जाना, घर के लोगों के प्रति उदासीन हो जाना, एक स्थान पर लंबे समय तक बैठे रहना, स्वभाव में चिड़चिड़ापन और आक्रामकता का बढ़ना आदि।इसके अलावा शरीर और बांहों पर इंजेक्शन के ताजा निशान अथवा सूजन, लंबे समय तक आंखों का लाल रहना या आंखें बुझी-सी रहना, घर में शयन कक्ष अथवा स्नानघर में इंजेक्शन की खाली सिरिंज या कफ सिरप की शीशी मिलना, या फिर अपराध प्रवृति बढ़ जाना, उधारी और चोरी जैसी आदतें नशे की प्रवृति की सूचक हैं। ये सब संकेत इस बात की और इशारा करते हैं कि नशे की लत ने इंसान को उस स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया है कि व्यक्ति मादक पदार्थों के सेवन के लिए किसी भी हद तक जा सकता है और जुर्म करने से भी परहेज नहीं करता।
एक यह तथ्य भी हैरान करने वाला है कि नशे के मामले में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। महिलाओं द्वारा भी इस तरह के मादक पदार्थों का सेवन काफी ज्यादा देखने को मिल रहा है।व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में तनाव, प्रेम संबंध, दांपत्य जीवन व तलाक आदि कारण, महिलाओं में नशे की बढ़ती लत के लिए जिम्मेदार हैं। बच्चों और युवाओं में वैकल्पिक नशे की लत जिस तेजी से फैलती जा रही है, वह समाज और सरकार के लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। लेकिन देखने में ये आ रहा है कि काली कमाई करके नौजवान पीढ़ी को नशे की दुनिया में धकेलने वालों के आगे हमारी कानून-व्यवस्था नतमस्तक है। वैकल्पिक नशे की जद में सबसे ज्यादा स्कूली बच्चे आ रहे हैं। वैकल्पिक नशे के खिलाफ सरकार और समाज दोनों को व्यापक अभियान चलाने की जरूरत है। साथ ही इस तरह के नशे का सामान मुहैया कराने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी हो। तभी हम अपनी भावी पीढ़ी को नशे के चंगुल से बचा पाएंगे।