क्या किसी “इंसान” की हत्या सिर्फ़ इस लिये की जा सकती है,कि उसका “धर्म” हमारे धर्म से अलग है, वो भी उस “धरती” पर जहाँ “चींटी” को मारना भी “पाप” बताया गया है. हां बताया तो गया है परंतु इसमें अफसोस इस लिए नहीं है कि यहां पर इसी धरती पर चींटी को छोड़ो बड़े-बड़े जानवरों को मारकर खा जाता है और उसे भी धर्म का नाम दिया जाता है जबकि सत्य यह है कि इससे धर्म का दूर-दूर तक लेना देना नहीं है जीव को खाना कोई भी खुदा या भगवान नहीं कह सकता क्योंकि उसने हर जीव अपने आप में से ही बनाया हुआ है जो अपने कर्म भोगने के लिए ही देह को धारण करते हैं अगर कोई नरभक्षी या खूनी गाय या कोई भी पशु पक्षी का जीव हो उसे मारा तो जा सकता है खाने के लिए वह उपयुक्त नहीं है अगर हमें मनुष्य को कोई मार के खाने लगे फिर क्या हो कुदरत ने सृष्टि को विश हिसाब से बना रखा है जिसस हरजीव अपनी आयु तक अपना पेट भर सकें परंतु वह मांसाहारी जीव की आकृति के अलग है उसकी जठराग्नि अलग है पाचन क्रिया अलग है और उसमें बुद्धि भी नहीं है इसलिए उसके लिए भूख मिटाने के लिए दूसरा और कोई साधन नहीं होता है इसलिए वह अपनी भूख प्राकृतिक की हिसाब से स्वभाव गति से हेविट आता है परंतु इंसान के लिए यह उचित जान नहीं पड़ता अपने शरीर को पुष्ट करने के लिए या अपनी जीवहाके मात्र सुवाद के लिए जीव की हत्या कर के खाजाना यह मनुस्य का सुव्भाविक खाना नहीं हो सकता कठिन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए पैगंम्रबर मोहम्मद सहाब यह निर्णय लिया था केजिस से सनिको के प्राण बच्चजाऐगै किसी ने किसी उपयोग
बड़ा अफसोस होता है के आज हम कैसे आपस में ही एक दूसरे के दुश्मन बनते जा रहे हैं
*मौलाना मुहम्मद अकरम*
*राष्ट्रीय अध्यक्ष*
*एकता समाज समिति*
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