लोकतंत्र व राजनीति विषय लेख भाग 2 लेखक राजकुमारी रुद्राणी हरियाणा

 लेख भाग दुसरा


*राजनीति और प्रचार सामग्री का उपयोग – भाग २



*लेखिका राजकुमारी- रुद्राणी ,हरियाणा पंजाब*


 पिछले भाग में हमने पड़ा कि किस प्रकार राजनीति जिसे राजाओं की नीति कहा गया है। जिस से देश खुशहाल बनता है । गलत प्रचार प्रसार के कारण धराशाही हो जाती है । संसार में जितनी बड़ी घटनाये हुई है । उनके पीछे प्रचार साधनों का ही हाथ रहा है । किन्तु यक्ष प्रश्न यह है कि ये साधन किन बातों से प्रभावित होते है । उन्हें समझा जाए । सभी साधन वास्तव में जड़ है । वह स्वयं कोई बदलाव नही लाते । बदलाव लाती है तो उनका प्रयोग करने वाली चेतना । इसी के एक पक्ष को हमने पिछले भाग में मानवीय स्वभाव की मर्यादा  के अंतर्गत पड़ा। अब आगे :- 

   २... काल की मर्यादा :- प्रत्येक देश का संचार साधन अपने आस पास चल रहे काल के प्रभाव से प्रभावित होता ही है।यह देखा गया है कि जैसे ही कोई राज सत्ता पदासीन हुई । उसकी प्रशंसा के किस्से घड़ने शुरू हो जाते है । कई प्रचार तंत्र वाले तो इतना भयभीत हो जाते है कि सत्ता धारीओं के धन और शक्ति बल से डर सत्य पर पर्दा डाल देते है । देश हित्त में क्या बोलना और प्रचारित करना है । मानो भूल ही जाते है । कहीं हम नजरबन्द या प्रताड़ित न हो , इस भय से कम्पित प्रचार प्रसार तंत्र कभी अपने देश /समाज का कल्याण नही कर पाता। कई देशों में प्रचार तंत्र को और स्वतंत्र छोडा गया । किन्तु उन्होंने समाज में अपनी पैठ शक्ति का गलत प्रयोग किया । उन्होंने किसी विशेष व्यक्ति या दल के प्रति सहानुभूति या विद्वेष का माहोल तैयार कर दिया । कहने का भाव संचार साधन यदि देश भक्त और विवेकवान के हाथों में हो तो देश की प्रबल इच्छाशक्ति ,एकता और उर्जा को सही दिशा मिलती है । देश प्रगति करता है ,राजनीति के बलशाली प्यादे भी धराशाही हो जाते है । संस्कृति समृध होती है । नैतिकता और जन जागरण से युद्ध को विराम मिलता है ।यदि संचार साधनों का प्रयोग अतिशीघ्र अमीर बनने के लालसी हाथों में हो तो वो स्वयं के साथ मानो देश को भी बेच देता है । जनता सब से अधिक संचार साधनों पर भरोसा करती है । इसलिए इन का उपयोग करने वालो की भारी नैतिक जिम्मेवारी बन जाती है । कि वह अपनी नैतिकता पर विलासिता के छींटे कभी न आने दे। भले ही हमारे शास्त्र कहते है :- आत्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियं भवति ... मनुष्य को अपने स्वार्थ के लिए ही सब कुछ प्रिय होता है । फिर भी कुछ एक संचार साधनों का इन के स्वामियो के द्वारा देश हित्त में जबरदस्त उपयोग किया गया है । ऐसे अनेकों उद्धरण हमारे ही नही कई अन्य देशों में मिले है । जनता को भी ऐसे संचार साधनों का और उपयोग कर देश हित्त में उनका उत्साह वर्धन करना चाहिए ।  

 ३...प्रवृति या पुरुषार्थ की मर्यादा का संचार साधन :- प्रत्येक वस्तु फल देने के लिए पुरुषार्थ की मांग करती है । किन्तु जब पुरुषार्थ न कर लोभ वश फल अर्जित करने की  लालसा जग उठे । तो आलसी असत्य को  सत्य के लिफाफे में लपेट कर परोसने लगता है । भारतीय राजनीति का उद्देश्य रामराज्य है । इस में समस्याओं के समाधान के लिए पुरुषार्थ ही मान्य है । 

श्रीराम साहित्य में इस साधन की महिमा का वर्णन है ।रावण अपने आतंक को विभिन्न साधनों से जनता के ह्रदय में बड़ाकर अपने राज्य का विस्तार कर रहा था । इस के लिए वह अपने पुष्पक विमान से चारों और आतंक मचा रहा था । हर उस  जगह पर मार काट कर अपने नाम का उद्दघोष करता । जिस से जनता के मानस पटल पर उस के भय आतंक की कहानिया तैरने लगी । स्वयं जनता का आतंकित ह्रदय ही उनकी जिह्वा को रावण के प्रचार प्रसार का साधन बना दिया ।

 ऐसी घटनाओं को रोकना और जनता को साहसी बना कर रावण के यश बल के प्रचार पर अंकुश लगाते हुए श्रीराम कहते है :- हे ! कपिराज , दृष्ट हो या अदृष्ट तो भी यह रजनीचर मेरा क्या कर सकता है । ये मेरा सूक्ष्म भी अहित्त नही कर सकता । पृथवी भर में जितने दानव ,पिशाच ,यक्ष और राक्षस है। उन सभी का इच्छा करूँ तो अंगुली के अग्रभाग से संहार कर सकता हूँ ।

इस प्रकार श्रीराम ने समझाया कि यदि भय आतंक के प्रचार का सुलभ साधन है तो पुरुषार्थ के बल को साधन बना कर इसे रोका जा सकता है ।सत्य सदाचार का प्रसार प्रचार भी किया जा सकता है ।कहने का भाव प्रचार तंत्र चाहे कोई भी हो उसे भय का संगी न बनाकर पुरुषार्थ का संगी बनना होगा । अन्यथा तंत्र कोई भी हो वो नष्ट हो ही जाता है ।

श्रीकृष्ण भी कहते है :- मेरे करने योग्य कुछ न होते हुए भी मैं लोक कल्याण के लिए ही कार्यरत हूँ ।यही वो वाणी है , जिस ने भारत को आज तक सुरक्षित रखा है ।पुरुषार्थ या पूर्ण रूप से खोज किये बिना कई संचार साधन ऐसी सूचनाये प्रसारित कर देते है ।जिस कारण पूरा देश प्रभावित हो जाता है।दुसरे देशों में हमारे राष्ट्र के प्रति गलत धारणा बनती है । नीतियां बदल जाति है ।  गलत उच्च आकांक्षाएं,मिथ्या धारणाओं के रूप में व्यापत होने लगती है ।तब प्रजा जन इन में निहित्त स्वार्थ और असमंजस के द्वारा लील लिए जाते है । इसलिए हमारे शास्त्र कहते है :-जो अपने शास्त्र बेच देता है । वो योद्धा नही कायर है ।

क्रमशः- शेष भाग ३ में  

                                                    रिपोटर चंद्रकांत सी पूजारी

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