लेख तिसरा अंतिम भाग
*राजनीति और प्रचार सामग्री का उपयोग – अंतिम भाग*
लेखिका राजकुमारी- रुद्राणी ,हरियाणा पंजाब
पिछले भागों में हमने पड़ा कि संसार में जितनी बड़ी घटनाये हुई है । उनके पीछे प्रचार साधनों का ही हाथ रहा है । किन्तु यक्ष प्रश्न यह है कि ये साधन किन बातों से प्रभावित होते है । उन्हें समझा जाए । सभी साधन वास्तव में जड़ है । वह स्वयं कोई बदलाव नही लाते । बदलाव लाती है तो उनका प्रयोग करने वाली चेतना । यदि हमारा स्वभाव निर्मल है ,हम समय के शासकों की अनीति के आगे न झुकते हुए पुरुषार्थी बने रहते है। तब ही हम प्रचार साधनों का सही प्रयोग कर पाएंगे ।इन्ही सब पक्षों को हमने मानवीय स्वभाव,काल और पुरुषार्थ की मर्यादा के अंतर्गत पड़ा। अब आगे मीडिया के संरक्षकों से उपेक्षित व्यवहार :-
हम सब जानते है कि मीडिया किसी को भी जनता का रोल मॉडल बना सकता है ।क्यूंकि जनता जानकारी के लिए मीडिया पर निर्भर ही नही करती । उस पर भरोसा भी करती है । ऐसे में समाचार पत्र हो या टेलीविज़न या कोई अन्य जानकारी के स्रोत। इनके संरक्षकों का मूल मन्त्र प्रकाश का संरक्षण हो , स्वस्थ मार्गदर्शन हो । यदि मीडिया के संरक्षक अंधकार के समर्थन में थोडा सा भी आगे बड़ते है तो इस से जनता का बहुत बड़ा अहित्त हो जाता है । पुन्य प्रवृति पाप प्रवृति में बदलते देर नही लगती । ऐसे में जनता विरोधी नीतिओं को भी उन्हें बहुत ही सावधानी और बुद्धिमता से उजागर करना होता है । संरक्षक में इतना सौहार्द,विवेक ,उदारता हो कि वो स्वस्थ मनोरंजन ही करे । देश विरोधी ताकतों के लिए वो महाकाल बन कर चट्टान कि भांति अडिग भूमिका में ही रहें ।असमाजिक तत्त्वों की राजनीति से प्रेरित हो कर अपयश ,अराजकता ,जातीयता को बड़ावा न दे। ऐसे संरक्षक ही श्रीराम राज्य के देवदूत कहलाते है । यदि हमने हीरो को जीरो और जीरो को हीरो बनाने वाली पैत्ड़ेबाजी को ही अपना लिया ।श्रध्दा वाले विषयों को अश्रद्धा में ,अश्रद्धा वाले विषयों को श्रध्दा में बदलने का कार्य ही रखना है । तब तो इस जीवन का भी अंततः कोई औचित्य नही रह जाता ।
ग्युन्टर ग्रास को १९९९में नोबल पुरस्कार दिया गया ।उस ने एक पुस्तक लिखी थी –(द टीन ड्रम ) । उस में एक वामन बच्चा टीन का डिब्बा बजा कर सब को सजग करता है ।ये बच्चा द्वितीय विश्व युद्ध के समय तानाशाह व्यवस्थाओं के कारण विकसित नहीं हो पाया था ।वह बच्चा कहता है-होशियार ! नाजी अब आने ही वाले है । जर्मनी इस वाक्य पर सब से ज्यादा विभोर हुआ था ।पोलैंड के पहले राष्ट्रपति लेक वालेसा ने कहा - काश , मैं भी ग्युटर ग्रास से हाथ मिला पाता। सभी गर्व से कहते है कि मैने उसे देखा है। किन्तु अब ग्रास कि एक नयी पुस्तक आई है-बाइम होयटन देयर स्वीबेल( प्याज छीलना ) । इस में उन्होंने कहा है कि वह हिटलर की सशक्त सेना स.स में थे। अब इस बात को लेकर लेक वलेमा एकदम एकदम अल्बर्ट पिंटो बने हुए है । वो कह रहे है कि अच्छा हुआ ,मैंने उस से हाथ नही मिलाया । कारण ?? गोदाएस्क शहर है ,जो पोलैंड की बंदरगाह है । इस का सम्बन्ध किसी तरह से ग्युटर ग्रास से जुदा हुआ है ।
इसलिए मीडिया समाज में किसी प्रदर्शन की वस्तु नही बनाना चाहिए । जब इस में प्रतिभावान लोगो की कंमी होती है या पैसा प्रतिभा का उपहास उडाता है । तब समाज में जागृति की आशा बेकार है । आज समाज में १० मिनट में दहेज हत्या ,४ मिनट में अपहरण ,५४ में बलात्कार ,२६ मिनट में ही छेड़छाड़ की घटनाएं घटित हो रही है ।तो हमे निश्चय ही इस के कारण को खोजना चाहिए । संचार तंत्र के दुरूपयोग को देखते हुए पंडित नेहरु ने एक बार कहा था –मुझे चाहे सारा फिल्म उद्योग ही बंद करना पड़े ।वो भी मंजूर है ।परन्तु एक भी ऐसी फिल्म नही बननी चाहिए । जो समाज पर प्रतिकूल असर डाले ।
इसलिए हमारा मानना है एक विवेकवान यदि अग्र स्थान पर हो तो वह आपसी प्रेम की परिभाषा सिखा कर हमे हमारी तुच्छ मानसिक्ता से ऊपर उठा सकता है ।अन्यथा यही सोच उस की ही नही सभी की आत्मशक्ति को क्षीण करती जाती है । भगवन शिव भी कहते है –परस्त्रीगामी और मद्धप व्यक्तियों को हराना सरल है ।इसलिए जिस देश के संचार साधन ऐसी विकृति को बडाये। उन का न होना ही बेहतर है ।
कई बार दो देशों में ऐसी परिस्थितिया बन जाती है कि जनता को समझ ही नही आता ,आखिर हुआ क्या है । ऐसे में शुद्ध संस्कारी ह्रदय वाले संरक्षक अपनी संचार तन्त्र की शक्ति से देश में आपसी प्रेम पैदा कर आंतरिक कलह को आसानी से रोक देते है ।जब हम आपसी शिकायत न भूल पाए , बातचीत के सारे रस्ते बंद हो जाए । तब यही एक माध्यम होता है ,जिस से दो देशों के लोग अपनी कोमल भावनाएं एक दुसरे तक पहुंचा पाते है । अपना विरोध और मजबूरी रख पाते है ।
राजनीति कई बार ऐसे मुद्दों को उछाल देती है । जो भले ही क्षणिक हितकारी तो हो किन्तु लम्बी यात्रा में प्रजा के लिए घातक होते है । जब दो देश एक दुसरे को राजनीतिक स्तर पर तोडना चाहते है। तो वो इसी हथियार का प्रयोग करते है । संचार साधनों से अपनी राक्षसी वृति के भाषणों का प्रसारण और लेखन करते है । उसे हमारे देश में पहुचाते है । जैसे कई बार देखने में आया है कि हमारी सीमा से लगे कुछ देश अपनी गलत विचारधारा से हमारी संस्कृति और लोगों को प्रभावित कर रहे है । ऐसी फूट डालने वाले घिनोने कार्यो को हमारे देश का संचार तंत्र अपने प्रचार से ही सही उत्तर दे सकता है । देश का कोई भी सजग प्रहरी बता सकता है कि कैसे निरंतर भारत विरोधी प्रचार को सुना कर युवाओं का यौवन और शक्ति ठग ली जा रही है । ऐसे आतंक के लिए प्रत्येक राज्य का संचार तंत्र अपने अपने क्षेत्र में मजबूत रक्षक बन कर अपनी अपनी भूमिका पार विचार करे ।तो आतंकवाद का पनपना नामुमकिन है । मुझे अफ़सोस है कि हम इन्हें ठीक से समझ नही पाए । यह अमरबेल की तरह संचार तंत्र का सहारा ले कर उसकी विश्वसनीयता को ही खाए जा रहे है। एक घटना सांझी करना चाहुगी। आप सीमा से लगे राज्यों में जाए । वहाँ पर आपको देश विरोधी लोग अपने कार्यक्रम मिशन टास्क को मिशन मनोरंजन के सहयोग से पूरा करते दिख जायेगे । ५ या १० किलोमीटर के हवाई मार्ग की रेंज के यह रेडियो स्टेशन वास्तव में गाने नही बजाते है । गानों के रूप में एक दुसरे को घातक घटनाओं को पूरा करने का गुप्त संकेत भेजते है । स्थिति अनुकूल है या प्रतिकूल ,इन बातो का इशारा यह सधारण से दिखने वाले गाने चला कर अपने आकाओं को देते है । यह संचार तंत्र का दुरूपयोग है । जिस पर तीक्ष्ण बुद्धि राजनेताओं को कटिबद्द होना होगा । देशभक्त धुरंधरो को इस पर ध्यान देना चाहिए ।
गत वर्षों में हमारे देश ने दुसरे देशों पर जो राजनीतिक दबाव बनाया है । सुरक्षाभाव अर्जित किया है । वो ऐसे ही नही हो गया । सभी कलाओं को रक्षित कर जो सुखद परिवर्तन आज देश में दिख रहा है । वह निरंतर कटिबद्ध होने का ही परिणाम है । यही राजनीति और प्रचार प्रसार सामग्री से भरे संचार तंत्र की दिग्विज्य का उद्दघोष है। अभी बस इतना ही ,शेष विचार फिर कभी सांझा करेंगे ।
प्रस्तुति :- रिपोटर चंद्रकांत सी पूजारी