क्या भारत विश्व गुरु बनने को तैयार हैं भाग 1 लेखक दीप्ति डांगे

 क्या भारत विश्वगुरु बनने को तैयार है? (भाग 1)

दीप्ति डांगे, मुम्बई

जहां एक तरफ प्राचीन भारत, जिसको शकुंतला के पुत्र राजा भरत ने नाम दिया,  एक पुत्री के रूप में समृद्ध होकर सोने की चिड़िया बनी वही दूसरी तरफ राजनीति, अर्थव्यवस्था,साहित्य, चिकित्सा,सभ्यता,  और संस्कृति का ज्ञान दुनिया को देकर विश्वगुरु बन कर इस पवित्र भूमि को गौरवान्ति किया और पूरी दुनिया को अपना कायल बनाया। लेकिन यही समृद्धि कुछ लालची आक्रान्ताओं को चुभने लगी और उन लोगो ने उसको लूटना शुरू कर उसकी गरिमा को तार तार कर उसपर कई सौ वर्षों तक राज किया।जिसके कारण उसकी समृद्धि का विनाश हो गया और वो उनकी गुलाम बन गयी। लेकिन उसके पुत्रो ने उस को बचाने के लिये उन आक्रमणकारियों का न केवल सामना किया बल्कि अपने बलिदान भी दिया जिसके परिणामस्वरूप वो गुलामी की जंजीरों को तोड़ एक बार फिर वो विश्वगुरु बनने की और अपने कदम बड़ा रही है।

पर आज के हालात देख क्या हम कह सकते है कि भारत फिर एक बार विश्वगुरु बन सकता है? विश्वगुरु यानी विश्व को पढ़ाने वाला शिक्षक या विश्व को अंधकार से प्रकाश की और लेजाने वाला मार्गदर्शक। अगर हम भारत की वर्तमान स्थिति देखे तो भारत आज फिर से समृद्धशाली बनता जा रहा है।चाहे वो आर्थिक क्षेत्र हो या चिकित्सा का क्षेत्र हो, रक्षा क्षेत्र हो या अंतरिक्ष की दुनिया हो, विज्ञान हो या प्रौद्योगिकीय क्षेत्र हो, कृषि क्षेत्र हो या फिर उत्पादन क्षेत्र हो। लेकिन क्या ये काफी है विश्वगुरु बनने के लिये? ऐसे समृद्ध देश तो आज सभी विकसित देश भी है। सच्चाई ये है कि आज हम सिर्फ विकसित देशो की नकल कर रहे उनकी सभ्यता, संस्कृति और शिक्षा को अपना कर अपनी बहुमूल्य, गौरवशाली सभ्यता, संस्कृत और शिक्षा का इतिहास भूल गए है। स्वतंत्रता के बाद भी कमजोर सरकार और स्वार्थी नेतृत्व ने देश की नींव को ओर खोखला कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप देश स्वतंत्र तो हो गया पर भारतवासियों की सोच स्वतंत्र नही पाई और गुलामी की जंजीरों मे वैसे ही जकड़ी रही। जो खुद गुलाम हो वो दुसरो को क्या दे सकता है?परन्तु कहीं न कहीं देश का हित सोचने वाले लोगों के द्वारा देश और इसकी सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने की कामयाब कोशिश की गई लेकिन धीरे धीरे देश के नेता अपने वोट बैंक के लिये देश को धर्म जाति मे विभाजित करते गए और अपना स्वार्थ साधने लगे और जनता के पैसे अपनी तिजोरियों मे भरने लगे। सरकार परिवारवाद तक सीमित हो गयी और नेता जातिवादी हो गए,सरकारी तंत्र को घूसखोरी रूपी दीमक लग गया और सरकारी अधिकारी भ्रष्ट होते चले गए। नई पीढ़िया सिर्फ़ पढ़ लिख कर बड़ी-बड़ी उपाधियाँ ग्रहण कर सिर्फ पैसे कमाने में लग गयी और और अपनी संस्कृति, सभ्यता को भूल पश्चिमी सभ्यता में डूब गई और इसका मूल कारण हमारी शिक्षा रही जो अंग्रेजो ने हमे  शिक्षा दी वही शिक्षा हमको आजादी के बाद भी प्राप्त हो रही है। जिससे देश का गौरवशाली इतिहास खो गया और नई पीढ़ी को देश से, देश की संस्कृति से कोई प्यार नही रहा।।दूसरी तरफ देश के दुश्मन देश को अंदर से खोखला ओर तोड़ने में लग गए। कानून अमीरों, सत्ताधारियो और समर्थवान लोगो के घर की जागीर बन गया। और देशद्रोहियो को पनाह देने लगा।

लेकिन एक बार फिर नियति ने करवट ली और देश मे अभूतपूर्व परिवर्तन हुए जिसने देश की जनता की आंखों मे फिर से देश को विश्वगुरु बनने का सपना बुनने लगा है। 


क्रमशः अगले दुसरे भागमे 


क्या हम विश्वगुरु बन सकते है? हमको क्या बदलाव करने होंगे? सरकार और जनता की क्या भूमिका होनी चाहिए? जवाब अगले भाग में.....

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