जनार्दन मिश्र जी बता रहे हैं भारत के इतिहास को यह कैसा रहा है यह अपनों के अहंकार को तोड़ता है और गैर के अहंकार को ताकत देता है यही विचारधारा है भारत के बहुत से लोगों की आज जैसी विकट स्थिति देश के सामने एक सनातन विचारधारा के सामने खड़ी हुई है उसके बावजूद भी अपनी क्षणिक मानसिक संतुष्टि के लिए न जाने हमारे कितने भाई आज भी पूर्व की भांति इतिहास को दोहराने पर तुले हुए हैं देखें कैसे कैसे इतिहास में हम लोगों ने मात खाई है इस महान धरती पर महापुरुष भी होते रहते हैं और महा दुष्ट भी यहीं पर रहते हैं हां हम यह मानते हैं के बीच के काल खंड ने हजारों वर्षों के इतिहास को कुछ महान दुष्टों ने अपने ही नजरिए से घड दिया हैतीन राज्यों में होने वाले चुनाव के नतीजे भी किसी को बताने की चेष्टा कर रहे हैं कि कब कब यहां पर जयचंद ओं का बोलबाला रहा है और राष्ट्रभक्त की विचारधारा पर अडिग होने वाला#भाजपा को वोट न देकर हमने #मोदी का #अहंकार तोड़ दिया। ये हमने कोई पहली बार नहीं किया है, इसी तरह पहले भी हमने साथ न देकर बड़ों-बड़ों का #अहंकार तोड़ा है..
बहुत पहले सिंध के हिन्दू #राजा_दाहिर का अहंकार तत्कालीन अफगानिस्तान और राजस्थान के हिन्दू राजाओं ने खत्म किया था। दाहिर ने सहायता के लिये पत्र लिखा, पर कोई भी नहीं आया। बहुत अहंकार था दाहिर को अपने पराक्रम का, मारा गया। अब ये अलग बात है कि उसके बाद सिंध में हिन्दुओं का निरंतर पतन ही होता रहा और आज अफगानिस्तान पूर्णतः इस्लामिक राष्ट्र है।
इसी तरह हमने मुहम्मद गोरी के आक्रमण के समय पृथ्वीराज चौहान का साथ न देकर उनके अहंकार को तोड़ा था। अब अलग बात है कि बाद में गोरी ने जयचंद को भी कुत्ते की मौत मारा।
मेवाड़ वालों को भी अपनी बहादुरी का बड़ा अहंकार था। जब खिलजी ने मेवाड़ घेर लिया तब पूरे राजपूताने से किसी ने भी साथ नहीं दिया, रावल रतन धोखे से मारे गये और पद्मावती को 16000 औरतों के साथ जौहर करना पड़ा। पद्मावती को भी अपनी सुंदरता पर बड़ा अहंकार था, तोड़ दिया।
राणा सांगा ने जब लोधी को कैद किया था, तब उनके अहंकार को तोड़ने के लिये डाकू बाबर को बुलाया गया। युद्ध में किसी ने राणा सांगा का साथ नहीं दिया, उनका सेनापति तीस हजार सैनिकों के साथ मारा गया, सांगा का अहंकार टूट गया। लेकिन लोधियों को भी मुगलों की गुलामी करनी पड़ी, मन्दिर तोड़े गए, स्त्रियां लूटी मुगलों ने..पर सांगा का अहंकार तो टूट ही गया न।
मराठे बड़े प्रतापी थे, मुगलों की वाट लगा दी थी उन्होंने। उनको भी बहुत अहंकार था। मुगल हार गये तो काफिरों को रोकने के लिए अफगानिस्तान से अब्दाली बुलाया गया, पानीपत के मैदान में सेनाएं सज गयीं। अब्दाली की सेना को तो रसद मिलती रही पर मराठों को किसी ने भी रसद नहीं भेजी..अहंकार जो तोड़ना था मराठों का। भूखे पेट मराठे लड़ते रहे, मरते रहे..हार गये। महाराष्ट्र का कोई ऐसा घर नहीं जिसका कोई बेटा शहीद न हुआ हो, लेकिन अहंकार तो टूट गया न।
न जाने कितनी बार हमने समय पर साथ न देकर अपनों के अहंकार को तोड़ा है, तो हम मोदी को भी सत्ता से हटा कर रहेंगे। भले ही हमें इसके लिये गोरियों, मुगलों, अब्दालियों या फिर इटली, पाकिस्तान की मदद लेनी पड़े और देश को उनके हाथों गिरवी रखना पड़े..हम मोदी का अहंकार तोड़ कर ही रहेंगे।
...... क्योंकि हमें ग़ुलामी में ही जीने की आदत पड़ गई है।
साभार जनार्धन मिश्रा जी