छोटे कस्बे देहात के पत्रकारों की सुकुड थी बुद्धिजब हम छोटे थे तभी से ही हम गांव देहात के लोगों से अपने बुजुर्गों से एक बात सुनते थे एक कहावत थी के ब्राह्मण कुत्ता और हाथी नहीं जात के साथी परंतु आज यह कहावत इससे भी अधिक पत्रकारों पर साबित हो रही है उसका कारण यह है के ज्यादातर पत्रकारों के जो देहात से जुड़े पत्रकार है छोटे कस्बों से जुड़े पत्रकार है उनकी आमदनी का स्रोत सभी की आमदनी का स्रोत एक ही है अब उस स्रोतों को वह बांटना नहीं चाहते और इसका लाभ प्रशासनिक अधिकारी उठाते रहते हैं और इन बेचारे पत्रकारों को मात्र एक चाय में वह काम करा लेते हैं जिस काम का अधिकारी बहुत बड़ा मेहनताना वसूलते हैं और पत्रकारों की दशा यह है कि अगर उनके किसी ग्रुप में किसी दूसरे पत्रकार ने खबर डाल दी तो वह बेचारी तुरंत ही उसे सावधान करते हैं आइंदा मेरे ग्रुप में खबर मत डालना नहीं तो मैं आपको ब्लॉक कर दूंगा परंतु कुछ ऐसे लोग होते हैं उनकी यह बात सुनकर या पढ़कर उन्हें ब्लॉक ही नहीं जड़ु ग्रुप से ही मिटा देते हैं आज के पत्रकारों की बस यही कहानी है क्योंकि हालत यह हो रही हे जैसे बुगी के नीचे चलते हुवे कुत्ते को यह भ्रम रहता हे की बुगी को मही खींच रहा हु असा ही उन पत्रकारों को भी लगता है की जो मेरे गुरूप पर दुसरा कोई खबर डालता है उस बेचारे को कुत्ते की नाई लगता हे की सारे मीडिया जगत को मही खींचें जा रहा हु कोई सद मती दे के जीस जगंह जीस वस्तु की अधिक दुकान होती हे सारा बाजार उधर ही मुड जाया करता है
छोटे कस्बे देहात के पत्रकारों की सुकुड थी बुद्धिजब हम छोटे थे तभी से ही हम गांव देहात के लोगों से अपने बुजुर्गों से एक बात सुनते थे एक कहावत थी के ब्राह्मण कुत्ता और हाथी नहीं जात के साथी परंतु आज यह कहावत इससे भी अधिक पत्रकारों पर साबित हो रही है उसका कारण यह है के ज्यादातर पत्रकारों के जो देहात से जुड़े पत्रकार है छोटे कस्बों से जुड़े पत्रकार है उनकी आमदनी का स्रोत सभी की आमदनी का स्रोत एक ही है अब उस स्रोतों को वह बांटना नहीं चाहते और इसका लाभ प्रशासनिक अधिकारी उठाते रहते हैं