12 नवंबर महान क्रांतिकारी सेनापति बापट के नाम से प्रसिद्ध समाजसेवी के जन्मदिन पर विशेष महावीर संगल

12 नवम्बर/जन्म-दिवस समाजसेवी क्रांतिकारी सेनापति बापट सेनापति बापट के नाम से प्रसिद्ध पांडुरंग महादेव बापट का जन्म 12 नवम्बर, 1880 को पारनेर (महाराष्ट्र) में श्री महादेव एवं गंगाबाई बापट के घर में हुआ था। पारनेर तथा पुणे में शिक्षा पाकर उन्होंने कुछ समय मुंबई में पढ़ाया। इसके बाद वे मंगलदास नाथूभाई की छात्रवृत्ति पाकर यांत्रिक अभियन्ता की उच्च शिक्षा पाने स्कॉटलैंड चले गये। वहां उन्होंने पढ़ाई के साथ ही राइफल चलाना भी सीखा। इस बीच उनकी भेंट श्यामजी कृष्ण वर्मा और वीर सावरकर से हुई। इससे उनके मन में भी स्वाधीनता के बीज प्रस्फुटित हो उठे। शेफर्ड सभागृह के एक कार्यक्रम में उन्होंने ब्रिटिश शासन में भारत की दशा पर निबन्ध पढ़ा। इसके प्रकाशित होते ही उन्हें भारत से मिल रही छात्रवृत्ति बंद हो गयी। वीर सावरकर ने इन्हें बम बनाने की तकनीक सीखने फ्रांस भेजा। उनकी इच्छा ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को गोली से उड़ाने तथा हाउस ऑफ कॉमन्स में बम फोड़ने की थी; पर उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गयी। इसके बाद सावरकर तथा वर्मा जी की सलाह पर वे कोलकाता आकर कुछ क्रांतिकारी घटनाओं में शामिल हुए। पुलिस ने उन्हें इंदौर में गिरफ्तार किया; पर तब तक उनका नाम बताने वाले मुखबिर को क्रांतिकारियों ने मार दिया। अतः उन पर अभियोग सिद्ध नहीं हुआ और वे जमानत पर छूट गये। अब बापट जी ने अपना ध्यान समाजसेवा तथा प्रवचन द्वारा धर्म जागरण की ओर लगाया। वे महार बच्चों को पढ़ाने लगे। प्रायः वे सफाई कर्मियों के साथ सड़क साफ करने लगते थे। अपने पुत्र के नामकरण पर उन्होंने पंडितों के बदले हरिजनों का पहले भोजन कराया। उन्होंने तिलक, वासु काका, श्री पराड़कर तथा डा. श्रीधर वेंकटेश केलकर के साथ कई पत्रों में भी काम किया। 1920 में उन्होंने अपनी संस्था ‘झाड़ू-कामगार मित्र मंडल’ द्वारा मुंबई में हड़ताल कराई। वे जनजागृति के लिए गले में लिखित पट्टी लटकाकर भजन गाते हुए घूमते थे। इससे श्रमिकों को उनके अधिकार प्राप्त हुए। ‘राजबन्दी मुक्ति मंडल’ के माध्यम से उन्होंने अंदमान में बंद क्रांतिकारियों की मुक्ति के लिए अनेक लेख लिखे, सभाएं कीं तथा हस्ताक्षर अभियान चलाया। टाटा कंपनी की योजना सह्याद्रि की पहाड़ियों पर एक बांध बनाने की थी। इससे सैकड़ों गांव डूब जाते। इसके विरोध में बापट जी तथा श्री विनायक राव भुस्कुटे ने आंदोलन किया। इस कारण उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया। छूटते ही वे फिर जन जागरण में लग जाते। उनके ‘रेल रोको अभियान’ से नाराज होकर शासन ने उन्हें सात वर्ष के लिए सिन्ध हैदराबाद की जेल में भेज दिया। इस आंदोलन से ही उन्हें ‘सेनापति’ की उपाधि मिली। वहां से लौटकर वे महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष बने। इस दौरान किये गये आंदोलनों के कारण उन्हें दस वर्ष का कारावास हुआ। इसमें से सात साल वे अंदमान में रहे। इसके बाद वे सुभाष बाबू द्वारा स्थापित फारवर्ड ब्लॉक में सक्रिय हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उग्र भाषणों के लिए वे कई बार गिरफ्तार हुए। नासिक जेल में तो वे अपने पुत्र वामनराव के साथ बंद रहे। 1946 के अकाल में उन्होंने श्रमिकों के लिए धन संग्रह किया। जवानी के अधिकांश वर्ष जेल में बिताने वाले बापट जी को 15 अगस्त, 1947 को पुणे में ध्वजारोहण करने का गौरव प्राप्त हुआ। इसके बाद भी गोवा मुक्ति तथा संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। भक्ति, सेवा तथा देशप्रेम के संगम सेनापति बापट का निधन 28 नवम्बर, 1967 को हुआ। पुणे-मुंबई में उनके नाम पर एक सड़क का नामकरण किया गया है। (संदर्भ : क्रांतिकारी कोश, भाग एक/विकीपीडिया) ................................. 12 नवम्बर/प्रेरक-प्रसंग मस्जिद में खाकी निक्कर व भगवा पट्टी का सम्मान विमान यात्रा सुखद तो है; पर उसकी दुर्घटनाएं बहुत दुखद होती हैं। ऐसा ही एक दुखद प्रसंग 12 नवम्बर, 1996 को घटित हुआ, जब हरियाणा में भिवानी के पास चरखी दादरी गांव के ऊपर दो विमान टकरा गये। इनमें से एक सऊदी अरब का तथा दूसरा कजाक एयरवेज का था। दोनों में आग लग गयी और वे ढाणी फोगाट, खेड़ी सनवाल तथा मालियावास गांवों के खेतों में आ गिरे। सऊदी विमान के कुल 312 लोगों में से 42 हिन्दू, 12 ईसाई तथा शेष सब मुसलमान थे। कजाक विमान में भी कुल 39 लोग थे। इस प्रकार देखते ही देखते 351 लोग काल के मुख में समा गये। दुर्घटना के कुछ समय बाद ही भिवानी के जिला संघचालक श्री जीतराम जी के साथ सैकड़ों स्वयंसेवक घटनास्थल पर पहुंच गये। वहां के डा0 हेडगेवार चिकित्सालय के चिकित्सक भी आ गये। अंधेरे के कारण पैट्रोमैक्स तथा एक जेनरेटर का प्रबंध कर सबसे पहले जीवित लोगों को ढूंढा गया, तो दो लोग ऐसे मिल गये; पर अस्पताल जाते समय मार्ग में ही वे भी चल बसे। एक स्थानीय किसान श्री चंद्रभान अपना टैªक्टर ले आये। स्वयंसेवकों ने उसमें बुरी तरह जले हुए शवों को लादा। रात में ही एक बर्फ के कारखाने को चालू कराया और 169 शवों को प्रातः पांच बजे तक भिवानी के चिकित्सालय में पहुंचाया गया। स्वयंसेवकों ने तत्काल ही ‘विमान दुर्घटना पीड़ित सहायता समिति’ का गठन कर लिया। इसमें संघ के साथ ही विश्व हिन्दू परिषद, सेवा भारती, भारत विकास परिषद, भारतीय जनता पार्टी, विद्यार्थी परिषद, आर्य समाज तथा अन्य सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि रखे गये। समिति ने तत्काल कफन तथा ताबूतों का प्रबंध किया। यह समाचार फैलते ही मृतकों के संबंधी, पत्रकार तथा पुलिस-प्रशासन वाले वहां आने लगे। अतः पूछताछ विभाग के साथ ही उनके लिए चाय, पानी, भोजन तथा वाहन आदि की व्यवस्था की गयी। कुछ मृतकों के शव पुलिस की उपस्थिति में उनके परिजनों को सौंप दिये गये। जिनके बारे में ठीक जानकारी नहीं मिली, ऐसे 76 मुसलमान तथा तीन ईसाइयों को उनके धार्मिक विधान के अनुसार दफनाया गया। इसमें स्थानीय मौलवी, दिल्ली से आये मुमताज चावला तथा मुंबई से आये इस्लामिया समिति के प्रतिनिधियों ने भी सहयोग दिया। तीन दिन बाद 15 नवम्बर को दादरी की मस्जिद में एक धन्यवाद सभा का आयोजन कर जिला संघचालक श्री जीतराम जी तथा भारत विकास परिषद के श्री ईश्वर जी को सम्मानित किया गया। अधिकांश समाचार पत्रों ने शीर्षक लगाया - मस्जिद में खाकी निक्कर व भगवा पट्टी का सम्मान। घटनास्थल पर आये केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री श्री इब्राहिम तथा पूर्व केन्द्रीय मंत्री जी.कुरियन ने कहा - आपकी जितनी प्रशंसा की जाए, वह कम है। मैं आपको धन्यवाद देता हूं। सीकर के जाफर अली और हाकिम खान ने कहा - इन खुदा के फरिश्तों को न जाने क्या-क्या कहा जाता है; पर आज भ्रम मिट गया। पुलिस अधीक्षक मोहम्मद शकील का कथन था - संकट के समय में सर्वाधिक सहयोग संघ वालों का रहा। मुझे उनसे यही आशा थी। ऐसे ही उद्गार वहां आये सभी लोगों के थे। धन्यवाद सभा में श्री जीतराम जी ने कहा कि जो धन एवं सामग्री लोगों ने दी है, उसमें से जो कुछ भी बचा है, उसे आंध्र के तूफान-पीड़ितों की सहायता हेतु भेजा जा रहा है। .............................इस प्रकार के भाव पूण्य संदेश के लेखक एवं भेजने वाले महावीर सिघंल मो 9897230196