Online की रफ्तार
न जाने online ये कैसी
दोस्ती हो गई अब
न जाने उस पर इतना विश्वास क्यों
आज online है तो वो कल offline
फिर भी दिल में इतनी इक्छाए क्यों
क्या मुझमें ही है
इतनी उत्सुकता उसमें भी है
मुझसे बात करने को
ये दोस्ती साल भर की हो गई
फिर भी कुछ बाते अधूरी - सी रह गई
तेरे साथ online आने से ये समय की रफ्तार
मानो कितनी तेजी में हो
माना ट्रेन एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन
अपने राहा की ओर पहुंचती है
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
किस स्टेशन पर है तू
समय से लौट आए तू
यही इंतजार करती
तेरे लेट आने से गुस्सा
तो बहुत रहता था मन में
तेरा online message आते ही
गुस्सा का 'ग' भूल जाती
कुछ ऐसी ही हमारी online दोस्ती वाली chatting
By Pooja Singh