हल्द्वानी। तीन माह पहले भी सूबे का मुखिया बनने की दौड़ में शामिल रहे पुष्कर धामी तब भले ही चूक गए, लेकिन किस्मत कब तक रूठी रह सकती है। आखिरकार तीन माह बाद भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व ने एक बार फिर परिवर्तन कर सत्ता उन्हें सौंप दी। हालांकि पार्टी ने तब भी तमाम कायसाें को दरकिनार कर
सांसद तीरथ सिंह रावत को सीएम का चेहरा घोषित कर सबको चौंका दिया था और इस बार भी चर्चा में रहने वाले सतपाल महराज और धन सिंह रावत जैसे वारिष्ठजनों के नाम पर विचार करने की बजाए सूबे को अब तक के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री के तौर पर पुष्कर धामी को कुर्सी सौंप दी। बेदाग छवि के धामी का उनके विधानसभा क्षेत्र में मजबूत जनाधार है, साथ ही वह पहाड़ की पीड़ और सीमांत की मुश्किलों को भी बखूबी समझते हैं। चलिए समझने की कोशिश करते हैं कि पार्टी ने उन्हें सूबे की जिम्मेदारी क्यों सौंपी।
किसान आंदोलन और तराई में कमजोर होता भाजपा का गढ़
पिछले विधानसभा चुनाव में तराई में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए कुल नौ सीटों में आठ पर कब्जा जमाया। जिसमें काशीपुर से अकाली दल के विधायक हरभजन सिंह चीमा का भी भाजपा को ही समर्थन है। जसपुर की सीट ही सिर्फ कांग्रेस के खाते में गई और आदेश चौहान चौहान विधायक चुने गए। पूर्व सीएम हरीश रावत तक यहां अपनी सीट नहीं बचा सके। वहीं अब किसान अंदाेलन ने तराई में भाजपा के गढ़ को हिलाकर रख दिया है। ऊधमसिंहनगर जिले में बहुसंख्यक सिख समुदाय के साथ ही किसानों में भी पार्टी के खिलाफ रोष है। ऐसे में भाजपा को तराई से एक ऐसे चेहरे की तलाश थी जो बेदाग हो और डैमेज कंट्रोल कर सके। इस लिहाज से पुष्कर सिंह धामी सूबे के लिए उपयुक्त चेहरा लगे।
पहाड़ की पीड़ा और सीमांत का दर्द समझते हैं धामी
पिथौरागढ़ जिले के डीडीहाट जैसी दुर्गम तहसील के मूल निवासी पुष्कर धामी पहाड़ की पीड़ा काे बखूबी समझते हैं। दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में दैनिक जरूरतों के लिए संघर्ष करते लोगों को उन्होंने करीब से जाना समझा है। पहाड़ मूल का होने के साथ ही वह अपने विधान सभा क्षेत्र खटीमा के बहाने तराई में भी अच्छी दखल रखते हैं। क्षेत्र की जनता के लिए सहज उपलब्ध धामी प्रदेश के युवाओं में भी अच्छी पकड़ रखते हैं। उन्हीं के आंदोलनों का ही नतीज रहा कि उद्योगों में पहाड़ के युवाओं के लिए 70 फीसद रोजगार सुरक्षित किया गया।
कुमाऊं और गढवाल में बना रहेगा राजनीतिक संतुलन
दो मंडल और 13 जिलों में सिमटे पर्वतीय प्रदेश की राजनीति को संभालने के लिए संतुलन बैठाना जरूरी है। सत्ता में कोई भी पार्टी हो कुमाऊं और गढ़वाल मंडल से प्रतिनिधित्व बराबर रखना ही पड़ता है। गढवाल मंडल से ही मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष होने के कारण पार्टी दोनाें मंडलों में संतुलन कायम नहीं कर पा रही थी। ऐसे में कुमाऊं के सीमांत से पुष्कर धामी को सीएम का चेहरा घोषित कर संतुलन बनाने की कोशिश की गई है। सियासी संतुलन का ऐस ही प्रतिनधित्व कैबिनेट में भी देखने के लिए मिलता है।
पार्टी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे तीरथ
सूबे में पार्टी को बेदाग और निर्विवािदत युवा चेहरे की जरूरत थी। एक ऐसा चेहरा जो संगठन और सरकार दोनों में सामंजस्य बैठाकर चल सके। तीरथ के बेतुके बयान और हरिद्वार महाकुंभ के दौरान उनके फैसलों ने पार्टी की काफी किरकिरी करा दी थी। इसके साथ ही उनके लिए उपचुनाव कराने और सीट को निकालने को लेकर भी पार्टी पूरी तरह आश्वस्त नहीं थी। यही कारण रहा कि बीते दिनों रामनगर में आयोजित चिंतन शिविर के दौरान ही सीएम का चेहरे को बदलने की पटकथा लिख दी गई थी। पुष्कर धामी बेदाग और निर्विवादित चेहरा हैं। उनकी संगठनात्मक क्षमता भी बेजोड़ है।
धामी के कारण फिट बैठ रहा जातीय समीकरण
हरिद्वार विधायक मदन कौशिक ब्राम्हण चेहरा हैं, एेसे में पार्टी को जातीय समीकरण साधने के लिए राजपूत चेहरे की जरूरत थी। इस लिहाज से भी पुष्कर सिंह धामी पार्टी के सभी मानकों पर फिट बैठे। और अब जबकि आगामी विधानसभा चुनाव को एक साल भी नहीं बचे हैं, भाजपा एक ऐसे युवा चेहरे पर दांव लगाकर देखना चाहती है कि वह पार्टी के लिए क्या कुछ कर आगामी विधानसभा चुनाव में मजबूत स्थिति में ला सकता है। क्या पुष्कर धामी पार्टी के मानकों पर खरा उतर पाएंगे और प्रदेश को एक स्थिर सरकार दे पाएंगे, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।