लेख
शीर्षक÷देश को खतरा: आंतरिक या बाहरी (प्रथम भाग )**लेखिका दीप्ति डांगे, मुम्बई*
किसी भी राष्ट्र की उत्पत्ति के साथ ही उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सर्वोपरि होती है। राष्ट्रीय सुरक्षा से तात्पर्य राष्ट्र की एकता अखंडता,संप्रभुता एवं नागरिकों के जीवन एवं उनकी संपत्ति की रक्षा करने से है। जिसको सशस्त्र सेनाओं,कानून एवं देश की सरकार के द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है ।
इसलिये चाणक्य ने देश पर चार प्रकार के खतरों के बारे में बताया है- आंतरिक,वाह्य,वाह्य रूप से सहायता प्राप्त आंतरिक,आंतरिक रूप से सहायता प्राप्त बाहरी।
जब राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा बाहर से होता है तो वो पूर्ण रूप से राष्ट्रीय रक्षा के क्षेत्र में आता है।आंतरिक खतरा मतलब एक देश की अपनी सीमाओं के भीतर की सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों से है।
क्योंकि इसमें बाह्य रूप से सहायता प्राप्त बाहरी खतरा भी शामिल हो जाता है।
ये एक बहुत पुरानी शब्दावली है लेकिन समय के साथ ही इसके मायने बदलते रहे हैं। स्वतंत्रता से पूर्व जहाँ आंतरिक सुरक्षा के केंद्र में धरना-प्रदर्शन, रैलियाँ, सांप्रदायिक दंगे, धार्मिक उन्माद थे तो वहीँ स्वतंत्रता के बाद विज्ञान एवं तकनीक विकसित होती प्रणालियों ने आंतरिक सुरक्षा को अधिक संवेदनशील और जटिल बना दिया है।जो अब पारंपरिक न होकर छदम हो गयी है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है जिसमे विभिन्न संस्कृतियों, जाति,धर्म, और भाषाओं को बोलने वाले लोग निवास करते हैं। जो जहां भारत को गौरवान्वित करते है वही दूसरी तरफ भारत की भू-राजनैतिक स्थिति, इसके पड़ोसी देश, विस्तृत एवं जोखिम भरी स्थलीय, वायु और समुद्री सीमा के साथ इस देश के ऐतिहासिक अनुभव और गलतियां इसे सुरक्षा की दृष्टि से अतिसंवेदनशील बनाते हैं। जो देश के लिये एक चुनौती बनती जा रही है
लोकतंत्र जो देश का गहना है धीरे धीरे उसकी चमक खोने लगी है।लोकतंत्र के चारो स्तम्भो को दीमक लग रहा है और वो अपनी मरम्मत का इंतज़ार कर रहे है।जिनको सेवक होना था वो ही स्वयंभू मालिक बन कर सत्ता के अभिमान मे चूर होकर देश का भक्षण करने लगे।
लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर संसद अब एक अखाड़ा बन गया सांसद अपनी मर्यादाएं भूल कर गुंडों की तरह हाथापाई कर संसद को चलने नही दे रहे। और संसद के बाहर कुर्सी के लोभ मे देश को धर्म जाति में बांटकर, घोटाले कर देश देश का धन अपनी तिजोरियों मे भर रहे है।
1947 में देश भले ही आजाद हो गया हो किन्तु गोरे अंग्रेजों के हाथ से निकल कर सत्ता काले अंग्रेजों के हाथ में आ गयी और मनमाने तरीके से सत्ता का संचालन करने लगे। संविधान के नाम पर शपथ लेने वाले संविधान के विरुद्ध कार्ये कर रहे है। देश का कानून आम और खास लोगो के लिये अलग अलग हो गया है,पारदर्शिता का अभाव है,न्यायालयों में नियुक्ति, स्थानांतरण में पारदर्शिता को लेकर सवाल उठते रहे है।कानून आज नेतायों और रसूखदारों की बपौती बन चुका है।।लाइसेंस-कोटा परमिट राज, अक्षम नौकरशाही,आरक्षण और बेलगाम भ्रष्टाचार ने सरकारी व्यवस्था के विरुद्ध माहौल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का दुरूपयोग
‘सबसे ज्यादा’ भारत मे हुआ है। मीडिया आज बिकाऊ हो चुकी है जिनको अब कई नामो से भी पुकारा जाता है जैसे दरबारी पत्रकारिता, pressitute मीडिया, गोदी मीडिया इत्यादि जो देश में समाधान कम, समस्या ज्यादा पैदा कर रही है जिनके कारण कई स्थानों पर समाज घातक स्थितियां भी निर्मित हो रही हैं। दंगे भी हुए हैं और देश के विरोध में वातावरण बनता हुआ भी दिखाई दिया है।
आरक्षण देश के लिए वो आंतरिक खतरा है जो देश को विकास की ओर नही बल्कि पतन की ओर ले जा रहा है।आरक्षण जो पिछड़ी जातियों, जनजातियों को देश की मुख्यधारा मे जोड़ने के लिये दिया गया था आज वो एक अधिकार बन गया है।देश के हर वर्ग के लोग आरक्षण की मांग करने लगे है और ये नेतायों की दुकान में सजा सबसे आकर्षक मुद्दा बन गया है।आज हालात ये हो चुके है कि कोई भी नेता अगर इसका विरोध करता है तो इसे राजनीतिक आत्महत्या की तरह देखा जाता है।वोटबैंक के चलते किसी भी सरकार की हिम्मत नही की जातिगत आरक्षण को खत्म कर सके।जिसकी वजह से आरक्षण के चलते योग्य उम्मीदवार का चयन न होकर अयोग्य उम्मीदवार का चयन हो जाता है।
भ्रष्टाचार जो आज हमारे देश के डीएनए मे आ चुका है।जिससे कोई भी अछूता नही है। समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार देश की उन्नति में बहुत घातक है।जिससे न केवल देश को आंतरिक बल्कि बाहरी खतरा भी बढ़ जाता है। देश में बेरोजगारी, घूसखोरी, अपराध की मात्रा में दिन-प्रतिदन वृद्धि होती जा रही है।इंसान के लोभी स्वभाव, और कानून के लचीलेपन के कारण देश को ये खोखला करता जा रहा है जिसके कारण दुश्मन देश की सहायता पाकर देश के कुछ लालची और सत्ता को पाने के मोह मे देश को खोखला और अस्थिर कर रहे।जो देश के हित मे बिल्कुल नही है।
क्रमशः अगले भाग में