शीर्षक-
अच्छे कर्मो का फल
लेखिका- सुनीता कुमारी
पूर्णियाँ बिहार
शभुनाथ जी शहर के जाने माने प्रतिष्ठित व्यक्ति है,
मैं उन्हे वर्षो से जानता हूँ ,अक्सर उन्हे सामाजिक समारोह धार्मिक समारोह में देखा करता था।
राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ साथ सामाजसेवा की भावना उनमें भी कूट कूट कर भरी हैं ।उनके साथ उनकी पत्नी भी समाज सेवा के कार्य में संलग्न रहती है। इस बात को पूरा शहर जानता था,इस कारण शहर में उनकी एक अलग ही प्रतिष्ठा थी।
वे दोनों कभी भी किसी की मदद करने से पीछे नहीं हटते थे ।उनकी इसी भावना के कारण मैं भी उनकी इज्जत किया करता था ।
आए दिन किसी ने किसी ,शहर के सामाजिक समारोह और धार्मिक समारोह में मेरी उनसे मुलाकात होती रहती थी।
शभुनाथ जी स्वभाव से शांत और सुशील थे, उनकी पत्नी भी अति संभ्रांत महिला थी।सामाजिक कार्य में अग्रसर रहनेवाली महिला थी ।
जब भी मेरी उनसे बात होती थी तो बहुत ही जिंदादिली से वह मुझसे बात करते थीं ।मुझे उनसे बात करके अपनापन सा अनुभव होता था क्योंकि, मैं भी राष्ट्रवादी और धर्म रक्षक विचारधारा का व्यक्ति हूं और मुझे भी राष्ट्रप्रेम और देश देश प्रेम में दिलचस्पी है,मैं भी जन जागृति का कार्य करता हूं और वे दोनों भी जनजागृति का कार्य करते थे ,इस कारण मेरी उनसे अच्छी खासी जानपहचान थी।
लगभग छह वर्ष पहले की बात है , मैं जब उन दोनों से जब भी मिलता था तो,उन्हे परेशान देखता था ।परेशानी की रेखाएं उनके चेहरे पर स्पष्ट दिखती थी ,पर मेरे हिम्मत नहीं होती थी कि उनके निजी मामले में दखल दू या उनसे उनकी नीचे बात पूछूं।
मेरा पुरा परिवार शभुनाथ जी और उनकी पत्नी को अच्छे से जानते थे ।आए दिन शंभू नाथ जी की और उनकी पत्नी की चर्चा मेरे घर में हुआ
करती थी।
मेरी मुलाकात अक्सर उनसे होती थी, वे मेरे स्वभाव से परिचित थे और मुझे बेटे की तरह सम्मान देते थे।
एक दिन अचानक ही शंभू नाथ जी से एक समाजिक कार्यक्रम में मिलना हुआ , कार्यक्रम समाप्त होने के बाद वे मुझसे साथ चलने को कहा ,मैंने सोचा कि, शायद कोई जनजागृति का काम होगा इसलिए साथ चलने को कह रहे है ,मैं भी उनके साथ चल पड़ा ।
उन्होने मुझे अपनी गाड़ी में बिठाया।
मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि उन्होंने आज तक तो कभी अपनी गाड़ी में नहीं बिठाया,न ही कभी घर आने को कहा । जब भी हमारी मुलाकात हुई तो किसी न किसी समारोह में ही हुई थी ।फिर वो अपने रास्ते, मैं अपने रास्ते ।
शंभू नाथ जी आज क्यों मुझे अपनी गाड़ी में बिठाकर मुझे ले जा रहे हैं??
मैं गाड़ी में बैठ गया तरह-तरह की बातें मेरे दिमाग में आने लगी, वह मुझे तुम बुला रहे थे । क्या राष्ट्र से जुड़ा हुआ कोई बात है या फिर समाज सेवा से जुड़ी हुई कोई बात है।
मेरे मन में तरह-तरह के सवाल हिलोरे मार रहे थे, शंभू नाथ जी का गाड़ी में भी उदास चेहरे के साथ मुझसे बात कर रहे थे ।उनकी नजरों में मेरे लिए उम्मीद की किरण ने दिख रही थी। लग रहा था जैसे कोई गंभीर बात कहने वाले हो। वे हमें अपने घर ले गये ।शंभू नाथ की पत्नी नाश्ता चाय लेकर आई और मुझसे बड़े प्रेम से बात किया, हालचाल पूछा और फिर वापस चली गई।
शंभू नाथ जी की उलझन मुझे समझ नहीं आ रही थी, वह कुछ कहना भी चाह रहे थे और बोल भी नहीं पा रहे थे । मुझसे रहा नही गया, मैंने खुद उनसे कहा-
मैं आपके बेटे जैसा हूं बेहिचक अपनी बात मुझसे कह सकते हैं।
मेरी बात सुनकर शंभू नाथ जी को हिम्मत आई और उन्होंने मुझसे कहा- चंद्रेश मुझे तुमसे मदद चाहिए, मैं तुम्हें हाल के वर्षों में अच्छे से जान रहा हूं, तुम एक नेक और अच्छे लड़के हो, तुम्हारी राष्ट्रवादी सोच समाज सेवा की भावना से से पूरा शहर और पुरा प्रदेश परिचित । हम और तुम दोनों एक ही गाड़ी के सवारी हैं। तुम्हारी और मेरी सोच एक जैसी है मैं उम्मीद कर सकता हूं कि तुम मेरी बात समझ सकोगे और मेरी मदद कर सकोगे।
मैंने संभूनाथ जी से कहा -आप बेहिचक मुझसे कह सकते हैं। मैं भी आपके बेटे जैसा ही हूं, मुझसे जितना बन पड़ेगा मैं आपकी मदद करूंगा।
शंभू नाथ जी ने कहा मुझे अपनी बेटी रितिका के लिए वर चाहिए। मुझे पता है कि यह काम सिर्फ तुम कर सकते हो।
मुझे आश्चर्य हुआ और मैंने उनसे कहा की आप तो शहर के जाने-माने प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, आपके समाज में भी आपकी प्रतिष्ठा बहुत अच्छी है ,आपकी बेटी से विवाह करने के लिए भला कौन इनकार कर सकता है, अच्छे से अच्छे रिश्ते आपकी बेटी के लिए आ सकते हैं ,एक बार आप बात तो चलाईये मे किसकी मजाल जो आपकी बेटी से शादी करने के लिए
मना कर दे।
मैं जानता हूं, मुझे पूरा शहर जानता है और इस शहर में मेरी प्रतिष्ठा बनी हुई है ।मगर मैं एक भाग्यशाली पिता ना होकर एक दुर्भाग्य शाली बेटी का पिता हूं ,
मेरी बेटी के गलत कदम ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा है। मैं किसी से भी अपनी बात नहीं कर सकता। क्योंकि ,मेरी बेटी ने जो किया है ,वह किसी से कहने लायक नही है। मेरी बेटी करण नाम के लड़के को पसंद करती थी, और उस लड़के ने मेरी बेटी को छोड़ दिया,
मेरी बेटी की मासुमियत का उसने गलत फायदा उठाया , जो हुआ अच्छा ही हुआ वह लड़का मेरी बेटी के लायक नहीं था।
बेटी की परवरिश में मुझसे और मेरी पत्नी से ही भूल हुई है, जिस कारण मेरी बेटी गलत रास्ते पर निकल गई। मैं और मेरी पत्नी अपने कार्यों में लगे रहे, व्यस्त दिनचर्या के कारण अपनी बेटी को समय नहीं दे पाए, इस कारण मेरी बेटी मुझसे दूर होती गई और गलत संगति में परकर उसने गलत लड़के से प्रेम कर लिया। जो लड़का उसके रुपए पैसे का भुखा था ,उसने मेरी बेटी का गलत फायदा उठाया ,उसके जीवन से खिलवाड़ किया।
कहो सके तो इस मामले में तुम मेरी मदद करो। मैं तुमसे हाथ जोड़कर विनती करता हूं कि, यह बात तुम किसी से ना कहोगे ,मेरी प्रतिष्ठा का सवाल है।
लोगो को पता चला तो मेरे पूरे जीवन की मेहनत मिट्टी में मिल जाएगी क्योंकि, मेरी बेटी उस लड़के की बच्चे की मां बनने वाली है।
हम हमारी बेटी की शादी करवाना चाहते है मगर, जिस लड़के के साथ उसकी शादी करना चाहते है उसे अंधेरे में नही रखना चाहते।कोई भी बात छुपाकर लड़के को धोखा नही देना चाहते क्योंकि ,बाद में पता चले, और मेरी बेटी का जीवन और नर्क बन जाए ,इस लिए हम लड़के को पुरी सच्चाई बताकर ही शादी करवाएंगे ।
तुम मुझे कोई ऐसा लड़का ढ़ूढ कर दो जो मेरी बेटी से उसकी सच्चाई जानते हुए शादी करे और मेरी प्रतिष्ठा भी बनी रहे । कोई लड़का गरीब परिवार का होगा तो भी चलेगा,बाद में हम उसे सहयोग कर आथिर्क संपन्न बना देगे।
यह सारी बातें सुनकर मैं सकते में आ गया। एक प्रतिष्ठित माता पिता की औलाद ऐसा कैसे कर सकती है??
यह सब करने से पहले क्या उसे जरा भी ध्यान ना रहा होगा कि ,उसके इस कदम से के माता-पिता पर क्या बीतेगी।
मुझे कुछ जवाब देते हुए ना बना और मैंने शंभू नाथ जी से कहा कि, मैं आपकी बेटी रितिका से एक बार मिलना चाहता हूं, उससे बातचीत करके समझना चाहता हूं , कि, उसने ऐसा क्यों किया??
शंभू नाथ जी ने कहा ठीक है एक बार मिल लो।
शंभू नाथ जी ने रितिका को कमरे में बुलाया और वह बाहर निकल गए। रितिका को मैंने कई बार दूर से ही देखा था, कभी भी मेरी रितिका से बात नहीं हुई थी, रीतिका देखने में काफी सुंदर थी और उसका अपनी सुंदरता पर घमंड भी था।
लेकिन उसकी सुंदरता आज के मॉडर्न रहन-सहन में दबी पड़ी थी बाल कलर किए हुए थे ,जींस और टीशर्ट पहन रखी थी ,पूरी तरह से उसने अपने आप को पाश्चात्य कपड़ों में ढक रखा था। भारतीय वेशभूषा की झलक उसके रंग रूप में नहीं दिख रही थी। रितिका बड़े बाप की बिगड़ी हुई औलाद लग रही थी।
मैंने रितिका से पूछा तुम्हारे पिता तुम्हारी शादी कराना चाहते हैं।
रितिका ने कहा हां मैं जानती हूं, मेरे पिता मेरे शादी करवाना चाहते हैं ।मैं अपने माता-पिता के लिए बोझ बन चुकी हूं , मैंने काम ही ऐसा किया है कि मुझे जल्द जल्द से जल्द इस घर से चले जाना चाहिए ।वरना मेरे पिता पिता समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे करण से मेरा प्रेम संबंध था पर मुझे ,उसे पहचानने में भूल हो गई ।
रितिका तुमने अपने जीवन काल में गंभीर पाप कर्म किया है,इस बात का तुम्हे अंदाजा है ,उसे तुम स्वीकार करती हो??
रितिका बोली हां मैं अपने पाप कर्म का प्रायश्चित करना चाहती हूँ ,मैं अपनी गलती सुधारना चाहती हूँ।
मेरे माता पिता मेरी गलती से बहुत शर्मिंदा है ,मैं उन्हे इस हालत में नही देख सकती।
अपनी गलती का मुझे बहुत अफसोस है,मैं अपने माता पिता को इस मुसीबत से निकालना चाहती हूँ।वो हर प्रायश्चित करना चाहती हूँ ,जिससे मेरे माता पिता को शुकून मिल सके।
मैंने अपने माता पिता की बातों अनसुना कर बहुत बड़ी गलती कर दी ,अब जीवन में कोई गलती नही करूगी ,जो मेरे माता पिता कहेगे ,मैं अब वही
करूगी।
रितिका तुम माँ बनने वाली हो, ये बात करण को पता है?? रितिका बोली नहीं ,मैंने बताने की कोशिश की थी मगर, मैं जिस दिन उनके घर खबर देने गयी उस दिन उसकी सगाई हो रही थी।
मैं उलटे पांव वापस चली आई। उसने मुझे धोखा
दिया ।मैं उसे अब बताकर क्या करूगी ।अब ये सिर्फ मेरा बच्चा है।मेरे माता पिता नही चाहते कि, मैं इस बच्चे को जन्म दूं ,पर वे मुझे किसी भी हास्पिटल नही लेकर जा सकते क्योंकि ,शहर के सारे लोग मुझे और मेरे परिवार को जानते है।रीतिका बोलकर चुप हो गई ।
मेरे पास कोई शब्द ही नही थे कि, रीतिका से कुछ
कहु।
शभुनाथ जी को आश्वासन देकर मैं घर आ गया और रातभर रीतिका और शभुनाथ जी के बारे में सोचता
रहा।शभुनाथ जी को दिए आश्वासन पर विचार करता रहा। यदि मैं अपनी जान पहचान में रितिका की शादी की बात चलाता हूँ तो सच्चाई नही छुपा सकता,और सच्चाई बता दी तो बात धीरे धीरे फैल जाएगी शभुनाथ जी की बदनामी हो जाएगी।
दो दिन रात भर मैं परेशान रहा। तीसरे दिन शंभूनाथ जी से मिला,रीतिका से भी मिला। फिर घर आकर सो गया।
अगले दिन-सुबह सुबह माँ ने जगाया तो आंख खुली।मैने माँ से कहा माँ मैं शभुनाथ जी की बेटी से शादी करना चाहता हूँ।
मेरी बात सुनकर माँ उछल पड़ी और खुश होकर बोली तुम तो शादी नही करना चाहते थे ,प्रण ले रखा था कि, शादी नही करूगा फिर??
चलो जो हुआ अच्छा ही हुआ, तुम शादी के लिए तैयार तो हुए ,वो भी शभुनाथ की कौन नही जानता।
मैं तुम्हारे पापा से बात करती हूँ जाकर शभुनाथ जी से मिलकर शादी की बात करे।
मेरी और रीतिका की शादी एकदम सादगी पूर्ण से शादी हो गई ।
आज मेरे और रीतिका के बेटे रजनीश का पाँचवा जन्मदिन हैं।
माँ बहुत खुश हैं ।जन्मदिवस की तैयारी हो रही है ।
मेरा रितिका से शादी का फैसला सही निकला।रितिका और मेरे बीच पती-पत्नी का रिश्ता न होते हुए भी रितिका मेरी अच्छी दोस्त है।शभुनाथ जी , रितिका और मेरे बीच हुए अनुबंध को पाँच वर्ष सात महीने बीत चुके है।
रीतिका फिर से कोई गलती न करे,एवं रितिका की पिछली जिंदगी कभी परिवार और समाज के बीच न आए, इसलिये शभुनाथ जी रितिका और मेरे बीच अनुबंध हुआ जिसे रीतिका पूरी इमानदारी निभा रही है।मुझसे और अपने पिता से किये वादें को रितिका पूरी इमानदारी से निभा रही है।
यह रितिका वह रितिका है ही नही जिसपर शादी से पहले पाश्चात्य रंग चढ़ा हुआ था।
मेरे और मेरे परिवार के स्नेह ने रीतिका को बदल दिया है ,वो अब बिल्कुल देशी रंग में रंगकर अच्छी बहु का फर्ज निभा रही है। रितिका में जो एक नारी में अच्छे गुण होने चाहिए वे सभी गुण रितिका ने अपने जीवन में ला दिया है। रितिका अच्छी बेटी ,अच्छी बहू अच्छी पत्नी अच्छी मां ,सभी स्थानों पर, सभी जगह पर रितिका अच्छी बन गई है।
रितिका के पिता शभुनाथ जी जब भी मेरे घर आते है मुझसे एक ही बात कहते है कि, मेरे अच्छे कर्म थे जो मुझे आप जैसा दामाद मिला ,वर्ना इस कलयुग में करण जैसे ही लड़के मिलते है।कर्म अच्छे हो तो लोग मझधार में डुबकर भी ऊबर जाते है और कर्म बुरे हो तो लोग किनारे में भी डूब जाते है। उनकी बात सुनकर मैं मन ही मन भगवान का धन्यवाद करता हूँ,शभुनाथ जी जैसे नेक इंसान से किया वादा मैं अच्छे से निभा
रहा हूँ।
मेरे भी अच्छे कर्म थे जो रितिका मुझे मिली,जो एक अच्छे और संस्कारी माता पिता की बेटी है।रितिका ने गलती की और समय पर उसने अपनी गलती मानकर सुधार ली ,आज वो सर्वगुण सम्पन्न स्त्री है,मेरी अर्धांगिनी है।