नदलेस ने किया कहानी वाचन और काव्य गोष्ठी का आयोजन
दिल्ली। गणतंत्र दिवस के अवसर पर नव दलित लेखक संघ ने कहानी वाचन और काव्य पाठ का ऑनलाइन आयोजन किया। जिसमें रत्नकुमार सांभरिया की 'वर' कहानी का वाचन डा. गीता कृष्णांगी ने किया। वर कहानी गत वर्ष, अक्टूबर की हंस पत्रिका में प्रकाशित व चर्चित हुई थी। जिस पर हंस टीम ने ऑडियो संस्करण भी तैयार किया था। कार्यक्रम में कहानी की रचना प्रक्रिया पर संक्षिप्त प्रकाश रत्नकुमार सांभरिया ने डाला। कविता पाठ के अंतर्गत कर्मशील भारती, पुष्पा विवेक और डा. टेकचंद ने उत्कृष्ट काव्य पाठ किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता नदलेस के अध्यक्ष डा. अनिल कुमार ने की व संचालन उपाध्यक्ष डा. अमित धर्मसिंह ने किया।कार्यक्रम के आरंभ में डा. गीता कृष्णांगी ने हंस पत्रिका के अक्टूबर, 2021 अंक में छपी और चर्चित रही रत्नकुमार सांभरिया की कहानी वर का वाचन किया। जिसके विषय में रत्नकुमार सांभरिया ने कहा कि निश्चित रूप से डा. गीता कृष्णांगी ने कहानी वर का बहुत सुंदर वाचन किया है। जिस गंभीरता, धैर्य और ठहराव के साथ उन्होंने कहानी का वाचन किया, उससे कहानी को सुनना अत्यंत आकर्षक रहा। उन्होंने कहानी के विषय में बताया कि वर कहानी घुमंतु समाज की महिला रोशनीबाई की जागरूकता को उजागर करने के लिए लिखी गई हैं। कहानी में रोशनीबाई द्वारा अपने शराबी कवाबी और अय्यास पति बोलाराम कुचबंदा से मुक्ति पाकर वर के रूप में अपने देवर मनीराम को चुनने की दास्तान है।
डा. टेकचंद ने आवरण, हम मौसम को सहते हैं, ईश्वर, सत्ता, गो - वंश, डर, संकल्प, शीर्षकों से काव्यपाठ किया। उनकी संकल्प कविता कुछ इस प्रकार रही -
"सुनो तानाशाह !
इस बरस मैं
खुद को बो दूंगा ज़मीन में
और एक पेड़ उगाऊंगा
जहां बहुत ऊंचाई पर
प्रेम फलेगा
वहां नहीं पहुंच पाएगा
तेरा खंजर-हाथ
तेरी दिग्भ्रमित भीड़
नहीं खोज पाएगी
उसका पता।"
नदलेस की संरक्षक पुष्पा विवेक जिनका हाल ही में पथरीली राहों पर काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ, ने नारी चेतना और लोकतंत्र से जुड़ी कई उत्कृष्ट कविताएं प्रस्तुत की। उनकी कुछ कविताओं के अंश कुछ इस प्रकार रहे-
जंग - ए - मैदान
कोई लड़ा, जंग- ए-मैदान में
कोई सोती कौम जगाता रहा.
दूसरी है -शाखाएँ ---हमारे अस्तित्व को बोनसाई बनाने में, तुमने खींचीं थी अनेकों रेखाएँ.
तीसरी -कैसी आजादी, किसकी आजादी।।
कर्मशील भारती ने एक क्रांतिकारी संत रविदास और हम भारत के लोग नामक दो लंबी गद्य कविताओं का पाठ किया। रैदास वाली कविता का अंश कुछ इस प्रकार रहा कि
"एक सामाजिक क्रांतिकारी को
किसी प्रभु का भक्त कहना
उस क्रांतिकारी का अपमान है
उसके संघर्ष कर्तव्य बोध और क्रांति की ज्वाला को
कमजोर करना है
उसे कमतर करके आंकना है
उस महान क्रांतिकारी ने कहा था
पराधीनता पात है जानहूं रे मीत
रैदास दास पराधीन से कौन करे है प्रीत।"
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डा. अनिल कुमार ने कहा कि आज का कार्यक्रम बेहद महत्त्वपूर्ण रहा। गणतंत्र दिवस पर सभी वरिष्ठ कवियों को सुनना और जनकथाकार रत्नकुमार सांभरिया की कहानी वर का वाचन तथा उस पर स्वयं सांभरिया जी द्वारा प्रकाश डाला जाना रचनात्मक रूप से लाभप्रद रहा। विशेषकर मुझे तो बहुत कुछ सीखने और समझने को मिला। इस तरह के आयोजन निश्चित ही दलित समाज और युवाओं के लिए बहुत लाभप्रद है। कार्यक्रम में राजन तनवर और अनिता भारती जी ने संक्षिप्त विचार रखे। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से ज्योति पासवान, अमिता मेहरोलिया, लाल चंद जैदिया, रामचंद्र प्रसाद, खन्नाप्रसाद अमीन, निरंजन राव, रानी कुमारी, डा. सत्येंद्र कुमार, डा. डी. आर. जलवानी, डा. विद्याराम, डा. दीपक लहरी, डा. डी. सी. मीणा, सुरेश उजाला, डा. नाविला सत्यदास, समय सिंह जोल, रेनू गौर, अमन यादव, जोगिंदर सिंह, सुशील झंझोट, हरिकेश गौतम, आर. एस. आघात, रजक शाह, प्रदीप ठाकुर, महावीर सिंह नाहर, रवि निर्मला सिंह, वर्ल्ड लाइफ फ्रीडम (.....), और भूप सिंह भारती आदि दलित रचनाकार उपस्थित रहे। कार्यक्रम में उपस्थित सभी साहित्यकारों का धन्यवाद ज्ञापन बृजपाल सहज ने किया।
डा. अमित धर्मसिंह
9310044324
27/01/2022