एक मशहूर किस्सा हैं.
एक वृक्ष पर उल्लू रहता था। उसे सिर्फ रात के अंधेरे में ही दिखाई देता। दिन के उजाले में उसकी आंखे चौन्धिया जाती। उल्लू को सूर्य के प्रकाश में कुछ भी दिखाई नही देता।धीरे धीरे उल्लू को रात के अंधेरे की आदत पड़ गई। उसे लगने लगा कि सूर्य ने उगना ही बन्द कर दिया है और वर्षो से दिन ही नही हुआ। उसकी ये मानसिकता बन गई कि सूर्य ने उल्लुओं को धोखा दिया है. यही सोच वृक्ष पर रहने वाले अन्य उल्लुओं की भी हो गई।
एक दिन अकस्मात कहीं से एक हँस आकर पेड पर बैठा और भरी दोपहरी मे प्रचण्ड गर्मी, तेज़ उमस देखकर हँस बोला, "आज के दिन कितनी गर्मी हैं। सूरज का प्रकाश भी आज प्रचण्ड चमक रहा हैं।"
हँस की बात सुनकर उल्लू हंसने लगा औऱ बोला, क्या "अन्धे" हो क्या? कहाँ हैं "दिन"?
कहाँ हैं सूर्य प्रकाश?
उल्लू की बात सुनकर हँस आश्चर्यचकित होकर बोला, "अरे? सामने तो है सूर्य और दिन क्या तुम्हें दिखाई नही दे रहा? सूर्य के प्रकाश की गर्मी महसूस नही हो रही?"
हँस की बात सुन उल्लू सकपका गया और भड़ककर बोला, "तुम्हें क्या पता? तुम्हें यहाँ आये समय ही कितना हुआ है यहां हम यहाँ सालो से है। हमने तो वर्षों से नही देखा सूर्य और प्रकाश। सूर्य ने हमें धोखा दिया... कहाँ हैं दिन?" उल्लू की बात का समर्थन करने अन्य उल्लू भी आ गये।
हँस समझ गया इन उल्लुओं को अंधरे की आदत लग चुकी हैं...
ये किस्सा योगीराज की आलोचना करने वाले #अन्धविरोधियो पर सटीक बैठता हैं। इन्हें योगी सरकार का कार्यरूपी प्रकाश दिखाई नही देता। जिन उल्लुओं को अखिलेश राज के अंधेरे की आदत पड़ गई हो उनकी आंखें योगी के विकास रूपी प्रकाश में चौन्धिआएंगी ही सही। वे हमेशा यही कहेंगे कहाँ हैं योगी का विकास? कहाँ हैं योगी (सूर्य) का कार्य (प्रकाश)? 5 सालो मे योगी ने क्या किया?
अब उल्लू सोच वालो को योगी के कार्य दिखाई देंगे क्या? अगर इन उलूक अन्धविरोधियो को कोई समझाने का प्रयास करें तो ये उन्हें #अंधे कहने लगते हैं।
उल्लू औऱ हँस मे कौन अंधा हैं ये बताने की आवश्यकता है क्या?
अब जिन ललूओं को अखिलेश राज के अंधरे की आदत पड़ी हो उन्हें योगी के कार्य कैसे दिखाई देंगे?..
#साभार