कविता गांवो की मिट्टी लेखिका नूतन राय महाराष्ट्र

 कविता



शीर्षक  गाँव की मिट्टी


लेखिका नूतन राय महाराष्ट्र 


बहुत याद आती है हमको अपने गाँव की माटी 

गाय के गोबर के उपले पर बनी वो चोखा बाटी ।


वो सखीया वो खेल खिलौने वो सावन के झूले

बचपन की वो प्यारी बातें भूले से ना भूले।


सावन भादो के मौसम में खेतों की हरियाली

 नहीं भूलती हमको वो बातें सभी निराली।


 मुझे नाज है की मैंने उस माटी में है जन्म लिया जिसकी गोद में गंगा खेले श्री राम कृष्ण ने जन्म लिया।


 रोजी-रोटी के चक्कर में हम अपने गाँव से दूर हुए 

बड़े से घर को छोड़कर एक कमरे में रहने को मजबूर हुए।


 ना भूले हैं ना भूलेंगे गाँव की सारी बातों को।

 वो सावन के झूले वो दिवाली की रातों को।


 हम रहते हैं शहरों में पर गांव हमारा हमारे अंदर है ।

याद हमें हर पल आता वो गांँव का सारा मंजर है।


 फागुन में सरसों के फूल जब खेतों में खिल जाता है 

चना मटर गन्ने का रस हमें याद अभी भी आता है।


 गांव के मेले दुर्गा पूजा याद बहुत सब आता है सच कहते हैं गांँव हमारा हमको बहुत ही भाता है।

स्वरचित व मौलिक रचना

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