देखें भारत का कौन दोस्त कौन दुश्मन एक विश्लेषण डॉक्टर अमन

 #मित्रता_बनाम_परराष्ट्रसंबंध



यूक्रेन अतीत में ऐसा देश रहा है जिसने अपने निर्माण के साथ ही भारतविरोधी रुख अपनाया। 


अमेरिका और विशेषतः निक्सन-किसिंजर की जोड़ी ने भारत से घृणा की हद तक संबंध निभाये। 


हमारी प्रधानमंत्री को 'बिच' तक कहा। 

भारतीय सेना के विरोध में बांग्लादेश में सातवां बेड़ा तक भेजने की कोशिश की। 


दूसरी ओर रूस ने- 


भारत के पक्ष में कई बार वीटो किया,

भारत को हथियार दिये, 

भारत के पक्ष में अमेरिकी बेड़े को काउंटर करने के लिए अपना बेड़ा भेजा। 


अब आप निश्चित रूप से सोच रहे होंगे कि अमेरिका हमारा दुश्मन और रूस हमारा दोस्त रहा है तो हमें पुतिन का साथ देना चाहिए। 


पर जरा रुकिये!


ये तथ्य भी पढ़ लें- 


-ये अमेरिका था जिसने भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की सीट ऑफर की थी और रूस ने विरोध किया था। 


-ये अमेरिका था जिसने चीनी आक्रमण के समय भारत को शस्त्र, रसद व अन्य सहायता उपलब्ध कराई जबकि रूस ने पीठ दिखा दी थी। 


-ये रूस था जिसने शास्त्रीजी की हत्या करवाई। 


-ये रूस की केजीबी थी जिसने भारत के इंदिरा कांग्रेस के नेताओं और यहाँ तक कि पूरे मंत्रिमंडल को पे रोल पर रखा हुआ था। 


-ये रूस था जिसने 1971 में विजयी भारतीय सेनाओं को पश्चिम पाकिस्तान में बढ़ने से रोक दिया व युद्धविराम का दवाब बनाया था। 


-ये रूस था जिसने 'एडमिरल गोर्शकोव' का 5000 करोड़ में सौदा तय कर लगभग 50000 करोड़ में टिपाया जिसे आज हम 'आईएनएस विक्रमादित्य' के नाम से जानते हैं। 


तो दो बातें काँच की तरह स्पष्ट हैं-


1) न अमेरिका बुरा था न रूस बुरा था बल्कि सच तो यह है कि बुराई तो भारत में थी और वह थी 'दुर्बलता' और दुर्बल चाहे व्यक्ति हों या राष्ट्र, सदैव ताकतवरों के मोहरे बनते हैं, सहयोगी नहीं। 


2)विदेश नीति का लक्ष्य 'मित्रता', 'न्याय' और 'कानून' जैसे मूर्खतापूर्ण भावुक शब्द नहीं बल्कि शुद्ध 'राष्ट्रीय स्वार्थ' होते हैं जिसे प्राप्त करने हेतु इन शब्दों का प्रयोग तो किया जाता है पर इनका मूल्य कुछ नहीं होता। 


3)विदेशनीति का एक ही आधार है कि आप कितने शक्तिशाली हैं और आपको अपनी शक्ति व सीमाओं का ज्ञान है या नहीं। 


भारत का तिरंगा व पासपोर्ट आज यूक्रेन में सुरक्षा की गारंटी है, यह मोदी युग के भारत की शक्ति है और मोदी दोंनों पक्षों से निर्लिप्त खड़े हैं यह उनकी अपनी शक्तिसीमा को पहचानने की समझदारी।  नतीजा यह कि दोंनों पक्ष भारत पर कोई दवाब नहीं बना पा रहे हैं। 


भारत के लिए' यह शब्द ही मोदी की विदेश नीति का आधार है। 


लेकिन नेहरू युग की पली बढ़ी पीढ़ी अभी भी इन भावुक अतीत से विदेशी राष्ट्रों को देखते हैं जबकि परराष्ट्र संबंधों में इन भावुकताओं का कोई स्थान होता ही नहीं। 


कल का शत्रु आज मित्र हो सकता है और मित्र घोर शत्रु। 


फ्रांस के महानायक चार्ल्स द गाल ने कहा था,"तुम्हारे सामने सिर्फ एक सच्चाई है और वह है फ्रांस।" 


मोदी के सामने भी सिर्फ एक ही सच्चाई रहती है और वह है 'भारत'। 


यही मोदी की सफलता का राज है।