नव दलित लेखक संघ की ऑनलाइन गोष्ठी का सुंदर काव्य चित्रण

 

नदलेस की ऑनलाइन मासिक गोष्ठी में देश भर से जुड़े कवियों ने किया काव्यपाठ 


नव दलित लेखक संघ की ऑनलाइन मासिक गोष्ठी में देश भर से जुड़े कवियों ने काव्यपाठ किया। गोष्ठी में अक्टूबर माह में बने नदलेस के आजीवन सदस्य रचनाकारों को आमंत्रित किया गया था। इनमें डा. राजन तनवर, डा. ईश्वर राही, सुरेश सौरभ गाजीपुरी, योगेंद्र प्रसाद अनिल, जोगेंद्र सिंह, आर. एस. आघात, रिछपाल विद्रोही, तिलक तनौदी स्वच्छंद, चितरंजन गोप लुकाटी, डा. रामावतार सागर, राकेश कुमार धनराज, डा. धीरजभाई वणकर,


डा. विपुल भवालिया, कविता भवालिया, मोहनलाल सोनल मनहंस आदि रचनाकार उपस्थित रहे और बेजोड़ काव्यपाठ किया। इनके अतिरिक्त गोष्ठी में डा. अमित धर्मसिंह, डा. गीता कृष्णांगी, डा. अमिता मेहरोलिया, महिपाल सिंह, रामस्वरूप मीणा, सोमी सैन, सुरेश कुमार, मामचंद सागर, हुमा खातून, मदनलाल राज़, तारा परमार, डा. बुद्धिराम बौद्ध, डा. सुरेखा, अखिलेश कुमार पासवान, राकेश यादव, बृजपाल सहज, महिपाल, बंशीधर नाहरवाल, जलेश्वरी गेंदले, पुष्पा विवेक, जगदीश कश्यप, दीप रंगा, डा. कुसुम वियोगी, रामदास बरवाली, बोधि फाउंडेशन, शिव बोधि, मंगीलाल, डा. अनिल कुमार आदि रचनाकार उपस्थित रहे। इनमें भी अधिकांश ने काव्यपाठ भी किया। गोष्ठी की अध्यक्षता नदलेस के उपाध्यक्ष मदनलाल राज़ ने की और संचालन डा. अमिता मेहरोलिया ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डा अमित धर्मसिंह ने किया।

          गोष्ठी का आरंभ डा. ईश्वर राही ने अपनी कविता साक्षात्कार से किया। उन्होंने नियुक्तियों में होने वाली गड़बड़ी को केंद्र में रखकर कविता कुछ यूं पढ़ी -"कल मेरा साक्षात्कार है/यह जानते हुए भी कि सबकुछ तय है/मैं बार-बार खोलता हूं किताबें।" रामस्वरूप मीणा ने किताब बाकी हैं कविता में पढ़ा कि "करना है पूरा वो ख़्वाब बाकी है/ मेरे हुनर का अभी वो ताब बाकी हैं।" डा.राजन तनवर ने बदलते समय की तस्वीर कविता में ऐसे प्रस्तुत की - "अब नहीं जागती मां/प्रभात के तारे को देखकर/नहीं जगाती बच्चों को पढ़ने के लिए।" जोगेंद्र सिंह ने विद्यार्थी दिवस कविता का ओजस्वी पाठ कुछ यूं किया "दूध पियो शेरनी का, और खुलकर दहाड़ लगाइए/शिक्षा की पूरी ताकत से, राहों के पहाड़ हटाइए।" सुरेश सौरभ गाजीपुरी ने दलित जागरण से जुड़ी रचना का सस्वर पाठ कुछ यूं किया - "मैं बहरों की बस्ती में आवाज उठाने आया हूँ/बाबा साहब भीमराव हूँ मिशन बताने आया हूं।" योगेंद्र प्रसाद अनिल ने नदलेस पर अपने हाइकु कुछ यूं प्रस्तुत किए -"नदलेस है/हमारा ठहरांव/प्रगति पथ/१/विचार मंच/मनुवादी विरोधी/प्रबुद्ध वर्ग/२/भीम भगत/फूले  की इन्कलाब/क्रांति कदम/३/कलम वीर/नवजुआठ हम/एटम बम/४/"  तिलक तनौदी स्वच्छंद ने व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाने वाली कविता पढ़ी - "शासन का क्यों सोच नही? नारी का स्वाभिमान पर/प्रशासन क्यों प्रहार न करता? नारी के अपमान पर/रक्षक क्यों भक्षक बन जाता? कानून का दरकिनार कर/अमानवीय घटनाएँ आ रही हर रोज नई  समाचार पर।" मामचंद सागर ने गायन कर प्रभावशाली गीत प्रस्तुत किया -"एकान्त निरा पाकर/क्यों घिर-घिर आ जाती हो।" 


          तदुपरान्त डा. बुद्धिराम बौद्ध ने पिता पर बेहतरीन कविता प्रस्तुत की। डा. रामावतार सागर ने भूख पर तरन्नुम से प्रभावशाली ग़ज़ल प्रस्तुत की -"भूख रोटी के निवालों तक नहीं पहुँची/ये ख़बर पांवों के छालों तक नहीं पहुँची/उम्र भर रातें अँधेरों में कटी उसकी/मुफ़लिसी आख़िर उजालों तक नहीं पहुँची।" रिछपाल विद्रोही ने मिथकों पर वाजिब सवाल उठाते हुए कविता कुछ यूं पढ़ी -"क्रौंच की आवाज़ उसने सुन ली/तुम्हारा क्रंदन उसे सुनाई नहीं पड़ा/क्रौंच का क्रंदन ज्यादा था या तुम्हारा/शायद तुमने यह नहीं विचारा।" राकेश कुमार धनराज की गंभीर कविता एक इंसान होने का बोध भी पसंद की गई- "अतीत में कभी उसे स्वीकारा ही न गया हो/कि उनके पास भी है इंसानों का आभासी चेहरा/उन तथाकथित समाजों की हलक से/कभी निकला ही नहीं कि उन्हें भी मिले मौका/साथ बैठने, साथ खड़ा होने या चलने का अधिकार।" पुष्पा विवेक ने दीपावली के अवसर पर अयोध्या में जलाएं गए दीयों में हुए अपव्यय पर सवाल खड़े करने वाली कविता प्रस्तुत की। जगदीश कश्यप ने विस्फारित नेत्रों से शीर्षक वाली सशक्त कविता प्रस्तुत की -"उस खडू़स  को/हां , हां मैंने देखा है/उस अधेड़ को उधेड़बुन में/चलते सरपट भागते/बस पकड़ने की चाह लिए/ मैंने देखा है/कौन सा मंतव्य व गंतव्य होगा/यों रोज-रोज कांधे पर एक झोला बेतरतीब से/केश श्वेत-श्याम /हाथ में लकुटि थामें/मैंने देखा है।" डा. विपुल कुमार भवालिया ने जीवन कविता में अपने उद्गार यूं प्रस्तुत किए -"किसकी शक्लें सूरत मिलती भोली-भाली, नादानी/ना जाने कोई ऐसा हो, ना जाने कोई वैसा हो/किसकी शक्लें सूरत मिलती तेज तर्रार, बादामी/ना जाने कोई उसके जैसा हो, ना जाने कोई कैसा हो।" चितरंजन गोप लुकाटी ने समय बड़ा नाजुक है में अपने विचार कुछ इस प्रकार प्रकट किए -"समय बड़ा नाजुक है/ जब गुलाम भी बोले/मालिक की भाषा /रहे खड़ा उसके पक्ष में/करे प्रतिरोध/अपने मुक्तिकामी का/तो समझो/समय बड़ा नाजुक है।"

         कविता भवालिया 'आध्या' की प्रेम कविता कुछ इस प्रकार रही- "तेरी याद में खो गए है, हम कुछ इस तरह/तेरे सिवा कुछ भी याद आता नहीं जाने कब आएगा वो पल/जब हम बरसेंगे, एक दूजे पर सावन की तरह।" मोहन लाल सोनल मनहंस ने बीस बीस की यादे कविता पढ़ा कि "कोरोना और चाइना के/खौफनाक वायरसी इरादे/नहीं भूल पायेंगे उम्र भर/सन दो हजार बीस की यादें।" रामदास बरवाली ने अपनी राजस्थानी गीत में दलित शोषण से जुड़े विचार अभिव्यक्त किए -"दलित अब जो भुगते सो मांड/बिन मांड्या नित सोसण होसी/करसी सामंत सांड।" इसके बाद बंशीधर नाहरवाल ने सामाजिक न्याय से जुड़ी कविता प्रस्तुत की और राकेश यादव श्रृंगार रस की रचना प्रस्तुत की। मदन लाल राज़ ने स्टिंग रे शीर्षक से कविता इस प्रकार से पढ़ी - "सारे समन्दर को, अपने भीतर समेटना चाहती हूँ/मैं स्टिंग रे हूँ/सबको खुल कर बताती हूँ/होश में होकर देख/जोश में होकर देख/सारा रत्नाकर मेरे आगोश में है/खामोश हो कर देख।" इसके बाद नदलेस के वर्तमान अध्यक्ष डा. कुसुम वियोगी ने जीवन की बड़ी विडंबना पर गीत प्रस्तुत किया -"अभिशप्त बनकर जग में जलता रहा/फूल बनकर भी शूलों में पलता रहा।" इसी के साथ संचालन कर रही डा. अमिता मेहरोलिया ने अपनी कविता में औरत की अभिलाषा को प्रस्तुत किया -"औरत क्या चाहती है/आसमान में उड़ना/अपने सपने पूरे करना/औरत क्या चाहती है/मन का पहनना/देर शाम तक टहलना। औरत क्या चाहती है/प्रेम में स्वतंत्रता/बोझिल रिश्तों में न बंधना।" अध्यक्षता कर रहे मदनलाल राज़ ने सभी कवियों की मुक्तकंठ से सराहना की और इस तरह की गोष्ठियों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। सभी उपस्थित कवियों और रचनाकारों को नदलेस से जुड़ते रहने और दूसरों को भी जोड़ने के आह्वान के साथ सभी उपस्थित रचनाकारों का धन्यवाद ज्ञापन डा. अमित धर्मसिंह ने किया।


हुमा खातून/सोमी सैन

प्रचार सचिव द्वय, नदलेस

27/10/2022

98917 21121/93549 84198

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