रत्नकुमार सांभरिया प्रसिद्ध उपन्यास सांप पर परिचर्चा गोष्टी

रत्नकुमार सांभरिया के बहुचर्चित उपन्यास 'सांप' पर परिचर्चा गोष्ठी

         दिल्ली। नव दलित लेखक संघ ने जनकथाकार रत्नकुमार सांभरिया के बहुचर्चित उपन्यास सांप पर परिचर्चा गोष्ठी आयोजित की। गोष्ठी में आमंत्रित अतिथियों और वक्ताओं में वरिष्ठ नव गीतकार जगदीश पंकज विशिष्ठ अतिथि, रत्नकुमार सांभरिया उपन्यास लेखक, अनिता भारती, पुष्पा विवेक, डॉ. गीता कृष्णांगी, सरिता भारत, बंशीधर नाहरवाल, सतीश खनगवाल, डॉ. अमित धर्मसिंह वक्ता, दीपक व मंजू किशोर रश्मि पेपर प्रस्तोता के तौर पर उपस्थित रहे। गोष्ठी की अध्यक्षता मदनलाल राज़ ने की और सफल संचालन हुमा ख़ातून ने किया। गोष्ठी में उक्त के अतिरिक्त अरुण कुमार पासवान, आर. एस. मीणा, राधेश्याम कांसोटिया, अकरम, जयराम कुमार पासवान, मधु जैन, जोगेंद्र सिंह, भीष्म देव आर्य, देव कुमार, डॉ. ईश्वर राही, डॉ. सुमन धर्मवीर, मामचंद सागर, डॉ. उषा सिंह, दीक्षांत सागर, अशोक पाल सिंह, आर. पी. सोनकर, कश्मीर सिंह, अनिल कुमार गौतम, फूलसिंह कुस्तवार, बृजपाल सहज, सुनील कुमार कर्दम, संजय प्रधान, सब्बू मुंतजिर, सुनिता कुमारी, प्रमोद सिंह, डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह, दीपराज विश्वास, देव प्रसाद पातरे, श्रीलाल बौद्ध, सेवराल प्रैक्टिशनर (...), ओमप्रकाश गौतम, रियान, रामकुमार, चितरंजन गोप लुकाटी, बी. एल. तोंदवाल, वर्षा वर्मा, डॉ. मोहनलाल सोनल मनहंस, जलेश्वरी गेंदले, हरि प्रसाद, डॉ. नाविला सत्यादास और वर्ल्ड लाइफ फ्रेंड (...) आदि गणमान्य रचनाकार उपस्थित रहे।
         सर्वप्रथम डॉ. गीता कृष्णांगी ने उपन्यासकार  रत्नकुमार सांभरिया का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया की "सांभरिया जी कहानी, नाटक, लघुकथा और आलोचना की दर्जनों पुस्तकें लिख चुके हैं। अनेक सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं से पुरस्कृत एवं सम्मानित हो चुके हैं। उनके उपन्यास सांप को भी राजस्थान साहित्य अकादमी का सर्वोच्च मीरा पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। इनके कार्यों पर काफी शोध हो चुके हैं। इनकी कहानी, नाटक आदि कई आकादमिक संस्थानों में पढ़ाए जा रहे हैं।" इसके अलावा डॉ. गीता कृष्णांगी ने सांप उपन्यास पर प्राप्त वरिष्ठ कवयित्री अनामिका जी का संक्षिप्त पत्र भी पढ़कर सुनाया। तत्पश्चात, रत्नकुमार सांभरिया के साहित्य पर अंग्रेजी में शोध कार्य कर रहे दीपक ने सांप उपन्यास पर अंग्रेजी में लिखे अपने पेपर का सार प्रस्तुत किया और मंजू किशोर रश्मि ने सांप उपन्यास पर तैयार किए गए अपने पेपर को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया।
       अनिता भारती ने कहा कि "सांप उपन्यास से पूर्व भी घुमंतुओं के जीवन पर काफी लिखा जा चुका है लेकिन यह अपने आप में एक अलग तरह का उपन्यास है जो उनके जीवन संघर्ष का इतना विषद वर्णन करता है। हालांकि मिलनदेवी का लखीराम के प्रति इस कदर आकर्षित होना थोड़ा अखरता है लेकिन उपन्यास अपने कथ्य और रचनाशीलता को लेकर बहुत ही उल्लेखनीय बन पड़ा है।" पुष्पा विवेक ने कहा कि "उपन्यास हर एंगल से पठनीय और प्रेरणा देने वाला है। इसमें न सिर्फ खानाबदोशों की दारुण दशा का चित्रण हुआ है बल्कि उनकी स्त्रियों की दशा का भी सटीक वर्णन किया गया है। यह वर्णन इतना गहरा और मार्मिक है कि पढ़ते-पढ़ते आंखों में आंसू आ जाते हैं।" सरिता भारत ने कहा कि "उपन्यास एक नहीं पूरे पैंतीस परिच्छेद और चार सौ चौबीस पृष्ठों में फैला हुआ है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उपन्यासकार ने कितनी गंभीरता, सूक्ष्मता और विस्तार से खानाबदोशों की जीवन त्रासदी को वाणी दी है। उपन्यास स्त्री चेतना के लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण है।" बंशीधर नाहरवाल ने कहा कि "मैंने तो बंजारा और खानाबदोशों को बहुत करीब से देखा है। सांभरिया जी भी मेरे निकट के रिश्तेदार हैं। इस नाते मैं कह सकता हूं कि उपन्यास वाकई बेजोड़ है। अपने कथ्य में बहुत ही अनूठा है।"
          डॉ. अमित धर्मसिंह ने कहा कि "उपन्यास को न सिर्फ कथ्य के आधार पर देखने की जरूरत है बल्कि उसकी संरचना और उद्देश्य को भी बारीकी से समझने की जरूरत है। उपन्यास की भाषा में प्रतीक, लोकोक्तियों, मुहावरों और देशज शब्दों का बेजोड़ प्रयोग किया गया है। उपन्यास घुमंतुओं के जीवन संघर्ष और सामाजिक न्याय का स्पष्ट रास्ता दिखाता है। उपन्यास में सांप शोषक  और पितृसत्ता के रूप में मौजूद है जिसको नींव से निकाल बाहर करने संदेश उपन्यास में अंतर्व्याप्त है" विशिष्ठ अतिथि जगदीश पंकज ने कहा कि "उपन्यासकार ने कड़ी मेहनत करके यह उपन्यास लिखा है। उन्होंने घुमंतुओं के जीवन को शब्दों में सिर्फ उकेरा ही नहीं बल्कि जिया भी है, तभी वे उनके जीवन, संस्कृति, परिवेश, स्थिति, परिस्थिति का इतना बारीकी से वर्णन कर पाए हैं। उपन्यास की भाषा और गढ़न भी बाकमाल है। भाषा में शब्द-शक्ति अभिधा, लक्षणा और व्यंजना तीनों का बखूबी प्रयोग हुआ है जिससे उपन्यास बेहतरीन साहित्यक कृति बन पड़ा है।" 
            लेखकीय वक्तव्य में रत्नकुमार सांभरिया ने नव दलित लेखक संघ का आभार व्यक्त करते हुए उपन्यास लेखन की पृष्ठभूमि पर यथोचित प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि "इसे लिखने में मुझे चार वर्ष से भी अधिक का समय लगा। इसके लिए मैंने घुमंतुओं के बीच में जाकर बुजुर्गों से बहुत सी जानकारी और अनुभव कलेक्ट किए, तब जाकर यह उपन्यास बन पाया। मैं ऐसा मानता हूं कि घुमंतुओं पर तो बहुत कुछ लिखा जा चुका है लेकिन अब जरूरत है उनके लिए लिखने की। जिसमें केवल सहानुभूति ही न हो बल्कि स्वानुभूति भी हो। मैं इस पर लगातार काम भी कर रहा हूं। जल्दी ही इसी विषय पर मेरा दूसरा उपन्यास नटनी भी प्रकाशित होने वाला है।" अध्यक्षता कर रहे मदनलाल राज़ ने सभी वक्ताओं के वक्तव्य और सफल गोष्ठी की सराहना करते हुए कहा कि "वास्तव में उपन्यास जिस पृष्ठभूमि पर लिख गया है, वह हम सबकी देखी भाली तो है समझी परखी नहीं। अब जरूरत है उसे समझने की। इस कड़ी में यह उपन्यास बेहतरीन कृति है। समाज के दबे, कुचले, उपेक्षित, वंचित, शोषित लोग यदि इसी तरह हमारे लेखन के विषय बनते रहे तो निश्चित ही हम बेहतरीन समाज बनाने में एक दिन जरूर कामयाब होंगे। इस संदर्भ में प्रेरणीय उपन्यास देने के लिए रत्नकुमार सांभरिया जी को पूरे नदलेस परिवार की ओर से हार्दिक बधाई।" सभी उपस्थित रचनाकारों का अनौपचारिक धन्यवाद ज्ञापन हुमा ख़ातून ने किया।

डॉ. गीता कृष्णांगी
18 दिसंबर, 2023
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